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07 नवंबर 2010

मध्य प्रदेश:विज्ञान कालेज से गृह विज्ञान का वेतन

गुणवत्ता बढ़ाने के नाम पर तमाम बदलाव करने वाला उच्च शिक्षा विभाग प्रोफेसरों की दबंगई से नहीं निकल पा रहा है। दबंगई का आलम यह है कि गृहविज्ञान के प्रोफेसर का वेतन विज्ञान कालेज से निकल रहा है। वहीं चहेतों के लिए जिलों की सीमा भी मिट गई हैं। ग्वालियर में पदस्थ प्रोफेसर सालों से भिंड और गुना के कालेजों से वेतन ले रहे हैं। सालों से चल रही यह मनमानी इस कदर बढ़ गई है कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी विभाग को छुटकारा नहीं मिल पा रहा है। विभाग में उजागर हुई इस मनमानी को जड़ से मिटाने और शैक्षणिक गुणवत्ता के उद्देश्य से उच्च शिक्षा विभाग ने 13 सितंबर को आदेश दिया था। इसमें शासन को चार सप्ताह की समय सीमा भी दी गई थी। अदालत ने गुणवत्ता के मद्देनजर शासन ने कहा था कि पदस्थापना करते समय यह ध्यान रखा जाए कि जिस विषय में शिक्षक का पद रिक्त है उसी के शिक्षक की पदस्थापना की जाए। ऐसा करना जहां शैक्षणिक स्तर को सुधारने में सहायक सिद्ध होगा, वहीं इन शिक्षकों को वेतन आहरण में भी समस्या नहीं होगी। मगर यह मामला कितना उलझा हुआ है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विभाग के सारे अधिकारी मिलकर भी नए सिरे से पदस्थापना नहीं कर पा रहे हैं। छह माह पहले एक आदेश से सभी को अपने मूल पद भेजने की हिम्मत दिखाने वाला विभाग अब चाहकर भी प्रोफेसरों को उनके विषय के पद पर नहीं बैठा पा रहा है। इसके चलते अदालत की समय सीमा गुजरने के एक माह बाद भी महज दो दर्जन प्रोफेसरों की नियमानुसार व विषयमान से पदस्थापना हो सकी है। जबकि एक सैकड़ा प्रोफेसर अभी भी पसंदीदा कालेज के लिए उठापटक में जुटे हैं। सूत्रों की मानें तो इस देरी की वजह भी प्रोफेसरों की दबंगई है। पहले भी दबंग और पहंुच वाले प्रोफेसरों के लिए ही व्यवस्था बिगाड़ी गई थी। इन्हें शहरों में रखने के लिए कस्बाई कालेज महज कैश काउंटर बने हुए थे, जहां केवल वेतन के लिए इनका नाम था। हालत यह थी कि इनमें से कई प्रोफेसर वेतन लेने भी इन कालेजों में नहीं पहंुचते थे। कोर बैंकिंग के जरिए इनका वेतन भी घर बैठे मिल रहा था। अब विभाग के सारे दिन रात मशक्कत कर रहे हैं, लेकिन शहरों में उनके विषयों के पद ही उपलब्ध नहीं हैं। इसके चलते सूची जारी नहीं हो पा रही है। जबकि जून के आदेश से प्रभावित शत प्रतिशत प्रोफेसर अभी भी अपने ही शहर में डटे रहने का दबाव बनाए हुए हैं। इसी दबाव का परिणाम है कि डेढ़ माह बाद जो सूची निकाली गई है, उसमें भी अधिकांश को उसी कालेज में रखा गया है जहां वे पहले से कार्य रहे थे। एक भी प्रोफेसर को दूसरे शहर में नहीं भेजा जा सका है। सभी को उन्हीं के शहर के दूसरे कालेज में एडजस्ट करना पड़ा है(दैनिक जागरण,भोपाल,७.११.२०१०)।

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