राजस्थान हाई कोर्ट ने राजस्थान यूनिवर्सिटी के शिक्षकों सहित अन्य कर्मचारियों के बच्चों को यूनिवर्सिटी के विभिन्न पाठ्यक्रमों की सीटों पर प्रवेश के विशेष कोटे को असंवैधानिक करार दिया है।
हाई कोर्ट ने कहा कि यूनिवर्सिटी ऐसा कोई प्रावधान नहीं कर सकती, जो प्रवेश चाहने वाले अन्य विद्यार्थियों में असमानता पैदा करती हो। हाई कोर्ट ने यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया कि वह आगामी शैक्षणिक सत्र से कर्मचारियों के बच्चों को केवल इस आधार पर प्रवेश में रियायत न दे कि वे यूनिवर्सिटी कर्मचारियों के बच्चे हैं। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा व न्यायाधीश मोहम्मद रफीक की खंडपीठ ने यह आदेश गौरव त्रिपाठी व अन्य तथा यूनिवर्सिटी की अपीलों को निस्तारित करते हुए दिया।
खंडपीठ ने यूनिवर्सिटी कर्मचारियों के बच्चों के लिए एमबीए पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए अपनाई जाने वाली विशेष परीक्षा की प्रक्रिया को निरस्त करते हुए कहा कि पूर्व में यूनिवर्सिटी पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले चुके परीक्षार्थी इस आदेश से प्रभावित नहीं होंगे। खंडपीठ ने कहा कि ऐसा कोई आधार नहीं है, जिससे कि यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों के बच्चों को प्रवेश में विशेष लाभ दिया जाए। अपीलार्थियों के वकील अभिनव शर्मा ने बताया कि हाई कोर्ट की एकलपीठ ने 18 दिसंबर 09 को क्षितिज त्रिपाठी की याचिका पर सुनवाई करते हुए गौरव त्रिपाठी व अन्य को एमबीए पाठ्यक्रम में दिए गए प्रवेश को रद्द कर दिया था।
इसे खंडपीठ में यह कहते हुए चुनौती दी गई कि एकलपीठ ने उन्हें सुनवाई का मौका नहीं दिया और क्षितिज ने याचिका में कर्मचारियों के बच्चों को दिए जाने विशेष कोटे को चुनौती नहीं दी, ऐसे में एकलपीठ विशेष कोटे के प्रावधान को गलत नहीं कह सकती। खंडपीठ ने अपीलों को निस्तारित करते हुए यूनिवर्सिटी के शिक्षकों व कर्मचारियों के बच्चों को पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए दिए जाने वाले कोटे को असंवैधानिक करार दिया और कहा कि यूनिवर्सिटी को ऐसा प्रावधान रखना न्यायिक नहीं है।
यह है मामला: क्षितिज ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर एमबीए पाठयक्रम में यूनिवर्सिटी कर्मचारियों के विशेष कोटे में गौरव त्रिपाठी व अन्य के प्रवेश को चुनौती दी थी। याचिका में कहा कि यूनिवर्सिटी ने एमबीए पाठयक्रम में प्रवेश के आवेदन की तिथि को 31 अगस्त 09 के बाद तीन बार और बढ़ाया, यदि तिथि नहीं बढ़ाई जाती तो उसका प्रवेश भी हो सकता था। एकलपीठ ने विशेष कोटे को गलत करार देते हुए गौरव त्रिपाठी व अन्य के प्रवेश को रद्द कर दिया था।
लैब टेक्निशियन नियुक्ति में सर्टिफिकेट को प्राथमिकता दें: हाई कोर्ट ने लैब टेक्निशियन के पद पर नियुक्ति मामले में चिकित्सा विभाग को निर्देश दिया कि वह पहले राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त संस्थान से 9 माह का प्रशिक्षण प्राप्त अभ्यर्थियों को प्राथमिकता दे। न्यायाधीश अजय रस्तोगी ने कैलाश चन्दर शर्मा की याचिका पर विभाग के प्रमुख चिकित्सा सचिव व निदेशक को नोटिस जारी कर पूछा कि क्यों न याचिका का निपटारा सुनवाई के प्रारंभिक स्तर पर ही कर दिया जाए।
याची के वकील ने बताया कि विभाग ने 6 अक्टूबर, 2009 को लैब टेक्निशियन के 312 पदों पर सीधी भर्ती के लिए आवेदन में सैकंडरी व लैबोरेटरी टेक्निशियन का सर्टिफिकेट योग्यता रखी गई। 21 सितंबर, 2010 को निर्णय किया गया कि नियुक्ति में मान्यता प्राप्त संस्थान से दो वर्ष का डिप्लोमा धारी पर भी विचार किया जाए। याचिका में चुनौती दी गई कि इस निर्णय से सर्टिफिकेट धारी के हित प्रभावित होंगे(दैनिक भास्कर,जयपुर,10.11.2010)।
राजस्थान पत्रिका की रिपोर्टः
राजस्थान हाईकोर्ट ने दाखिले में राजस्थान विश्वविद्यालय कर्मचारियों के बच्चों के कोटा को असंवैधानिक करार देते हुए आगामी वर्षों के लिए इसे समाप्त कर दिया है। लेकिन इसका अब तक हो चुके दाखिलों पर कोई असर नहीं होगा।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश अरूण मिश्रा व न्यायाधीश मोहम्मद रफीक की खण्डपीठ ने गौरव त्रिपाठी व अन्य की अपील पर यह आदेश दिया। यह मामला आरए पोद्दार संस्थान में प्रबन्धन पाठयक्रम में दाखिले से सम्बन्घित है। एकलपीठ ने क्षितिज पारीक की याचिका पर आरए पोद्दार संस्थान में विवि कर्मियों के बच्चों के कोटा को असंवैधानिक करार देते हुए उसके तहत हुए दाखिलों को रद्द कर दिया था, याचिका में कहा कि विवि ने दाखिले की प्रक्रिया आगे क्यों खिसकाई। इस पर विवि ने कहा था कि पात्रता परीक्षा के परिणाम में देरी के कारण ऎसा किया गया। इस मामले में एकलपीठ के इस आदेश को त्रिपाठी ने अपील के जरिए चुनौती दी, खण्डपीठ ने इस कोटा के तहत हो चुके दाखिलों को संरक्षित कर दिया।
राजस्थान पत्रिका की रिपोर्टः
राजस्थान हाईकोर्ट ने दाखिले में राजस्थान विश्वविद्यालय कर्मचारियों के बच्चों के कोटा को असंवैधानिक करार देते हुए आगामी वर्षों के लिए इसे समाप्त कर दिया है। लेकिन इसका अब तक हो चुके दाखिलों पर कोई असर नहीं होगा।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश अरूण मिश्रा व न्यायाधीश मोहम्मद रफीक की खण्डपीठ ने गौरव त्रिपाठी व अन्य की अपील पर यह आदेश दिया। यह मामला आरए पोद्दार संस्थान में प्रबन्धन पाठयक्रम में दाखिले से सम्बन्घित है। एकलपीठ ने क्षितिज पारीक की याचिका पर आरए पोद्दार संस्थान में विवि कर्मियों के बच्चों के कोटा को असंवैधानिक करार देते हुए उसके तहत हुए दाखिलों को रद्द कर दिया था, याचिका में कहा कि विवि ने दाखिले की प्रक्रिया आगे क्यों खिसकाई। इस पर विवि ने कहा था कि पात्रता परीक्षा के परिणाम में देरी के कारण ऎसा किया गया। इस मामले में एकलपीठ के इस आदेश को त्रिपाठी ने अपील के जरिए चुनौती दी, खण्डपीठ ने इस कोटा के तहत हो चुके दाखिलों को संरक्षित कर दिया।
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