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06 नवंबर 2010

इलाहाबाद विवि में खेल सुविधाओं का अभाव

विश्वविद्यालय में खेल संसाधनों का नितांत अभाव है। जो व्यवस्था है वह भी प्रयोग में नहीं आ रही है। इससे प्रतिभा का हनन हो रहा है। ऐसा मानना है इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा विभाग के प्रमुख डा. डीसी लाल का। उनका कहना है कि विश्वविद्यालय को केन्द्रीय दर्जा मिलने के बाद से सुविधाओं में खासी बढ़ोतरी होनी चाहिए लेकिन अभी तक ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। अभी तक छात्रों को न तो स्तरीय कोचिंग की सुविधा मिल रही है और न खेल संसाधन मिल रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है कि विश्वविद्यालय की तरफ से अच्छे खिलाड़ी निकले इस दिशा में प्रयास नहीं हो रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि पूर्व में जो भी खेल मैदान हुआ करते थे वे अब समाप्त हो रहे हैं। बानगी के तौर पर बास्केटबाल कोर्ट को देखा जा सकता है। नया कोर्ट बनवाया गया और कुछ ही दिन बीतते न बीतते यह साइकिल स्टैंड के रूप में तब्दील हो गया। जब कि इस कोर्ट पर खिलाडि़यों के अभ्यास की व्यवस्था की जानी चाहिए थी। सम्बंधित खेलों के लिए अच्छे कोच भी मिलने चाहिए थे। उन्होंने यह भी बताया कि पूर्व में कुछ विषयों के लिए कोच की नियुक्ति करने के संदर्भ में विज्ञापन किया गया लेकिन अब वह प्रक्रिया अधर में लटक चुकी है। इससे भी खिलाडि़यों को नुकसान हो रहा है। इसी कड़ी में स्वीमिंग पूल व कुश्ती आदि का मैदान भी अस्तित्व खो रहा है। यदि गौर करें तो लगभग दस वर्ष पूर्व इन जगहों पर खिलाड़ी अभ्यास किया करते थे। इस लचर व्यवस्था पर कैसे अच्छे खिलाड़ी निकल सकते हैं। यह बहुत बड़ा प्रश्न है। विश्वविद्यालय में कई खेलों की व्यवस्था है लेकिन वे सीधे तौर पर छात्रों से नहीं जुड़े हैं इसके चलते लाभ नहीं मिल रहा है(दैनिक जागरण,गोरखपुर संस्करण,6.11.2010)।

1 टिप्पणी:

  1. 'असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय ' यानी कि असत्य की ओर नहीं सत्‍य की ओर, अंधकार नहीं प्रकाश की ओर, मृत्यु नहीं अमृतत्व की ओर बढ़ो ।

    दीप-पर्व की आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं ! आपका - अशोक बजाज रायपुर

    ग्राम-चौपाल में आपका स्वागत है
    http://www.ashokbajaj.com/2010/11/blog-post_06.html

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