सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को सीधी भर्ती वाली सरकारी नौकरियों में 20 फीसदी आरक्षण देने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर लगी हाईकोर्ट की रोक हटा दी है। इस फैसले से यूपी में महिलाओं को 20 फीसदी आरक्षण मिलेगा जो जाति-वर्ग से अलग हटकर होगा। जस्टिस आफताब आलम और आरएम लोढ़ा की खंडपीठ ने यह आदेश उत्तर प्रदेश सरकार की अपील पर दिया। हाईकोर्ट ने सरकार की योजना यह कहकर समाप्त कर दी थी यह आरक्षण के अंदर आरक्षण वाली योजना नहीं है। उप्र सरकार की ओर से एएजी शैल द्विवेदी तथा वंदना मिश्रा ने दलील दी कि हाईकोर्ट ने राजस्थान के एक फैसले को आधार बनाया है जिसमें आरक्षण के अंदर ही आरक्षण देने का आशय है। लेकिन उप्र सरकार ने आरक्षण के अंदर आरक्षण देने का आदेश नहीं दिया है। यदि हाईकोर्ट का आदेश माना जाए तो क्षैतिज आरक्षण देने का पूरा उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा और सीटें पुरुष उम्मीदवारों स भरनी पड़ेंगी। उन्होंन स्पष्ट किया कि उप्र. सरकार ने महिलाओं के लिए वर्गगत आरक्षण का प्रावधान किया है। आदेश का आशय महिलाओं के लिए अवसरों का समतल मैदान बनाना है। इससे कोई मतलब नहीं कि वे किस वर्ग और जाति की हैं।
"यह अनुच्छेद 15 (3) के तहत नौकरियों के लिए दिया गया विशेष आरक्षण है जो अनुच्छेद 16 (4) के तहत दिए जाने वाले सामाजिक आरक्षण से अलग है। यह आरक्षण सिर्फ महिलाओं के लिए है जिसमें जाति, वर्ग और धर्म का कोई अर्थ नहीं है। महिलाएँ स्वयं में एक विशेष वर्ग हैं जिसमें सिर्फ एक ही कारक है और वह है महिला होना"-उप्र सरकार (सुप्रीम कोर्ट में)।
क्या था मामला
इस मामले में सरकार के 26 फ रवरी ’99 के जीओ को चुनौती दी गई थी, जिसमें महिलाओं के लिए 20 फीसदी आरक्षण का प्रावधान रखा गया था। इस मामले में 35 हजार रिक्तियाँ थीं जिसमें से 27 फीसदी ओबीसी (9450) तथा 20 फीसदी (1890) महिलाओं के लिए रिक्त थीं। हालाँकि भर्ती में 2744 महिला ओबीसी उम्मीदवार चुन ली गईं यानी ओबीसी की 854 महिलाएँ अतिरिक्त चुन ली गईं। याचिका को सिंगल पीठ ने खारिज कर दिया था लेकि न खंडपीठ ने इसे स्वीकार कर योजना समाप्त कर दी थी(श्याम सुमन,हिंदुस्तान,दिल्ली,30.11.2010)।
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