उप्र माध्यमिक शिक्षा परिषद् सीबीएसई की तर्ज पर चलने की कोशिश तो कर रहा है, लेकिन इस चक्कर में शायद इसे लागू करने के लिए जरूरी तथ्यों पर ध्यान देने की आवश्यकता महसूस नहीं की जा रही है। ग्रेडिंग सिस्टम, स्टेप मार्किग सिस्टम के बाद अब दसवीं में एक विषय की एक परीक्षा नीति लागू की गई है।
पहले एक विषय के कई पेपर होते थे, जैसे विज्ञान के तीन, सामाजिक विज्ञान के दो व हिंदी के भी दो। शिक्षकों का एक बड़ा वर्ग एक विषय के एक पेपर होने को सही नहीं मान रहा। उनका तर्क है कि इससे दसवीं की शिक्षा का स्तर कम होगा। इसके अतिरिक्त एक समस्या पेपर के मूल्यांकन की भी हो सकती है। विशेष रूप से विज्ञान विषय की, क्योंकि विज्ञान के तीन भाग भौतिकी, रसायन व जीव विज्ञान को अलग-अलग शिक्षक पढ़ाते हैं। ऐसे में इस विषय की कॉपी का मूल्यांकन कैसे होगा, यह एक बड़ा प्रश्न बना हुआ है।
रसायन विज्ञान को तो भौतिक या जीव विज्ञान के शिक्षक में से कोई भी चेक कर सकता है, लेकिन भौतिक या जीव विज्ञान के पेपर को एक शिक्षक द्वारा मूल्यांकित करना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में इस परीक्षा का मूल्यांकन आधार क्या होगा, इसके बारे में कोई रणनीति तैयार नहीं है। विज्ञान के शिक्षक दीपक शर्मा का कहना है कि जीव विज्ञान व भौतिक विज्ञान दो बिल्कुल अलग विषय हैं। यदि एक ही शिक्षक इन्हें पढ़ाता है या परीक्षा का मूल्यांकन करता है तो इसका प्रभाव बच्चों पर पड़ना निश्चित है।
जीआईसी के सोशल साइंस के शिक्षक सतीश कुमार का कहना है कि सामाजिक विज्ञान का एक पेपर होने के बाद छात्रों के लिए पेपर लंबा हो जाएगा, क्योंकि सिलेबस में ज्यादा बदलाव नहीं हुए हैं जिससे पेपर को करने में छात्रों को काफी मशक्कत करनी होगी। हिंदी की परीक्षा भी अब विस्तृत हो जाएगी।
एसएसडी सदर के प्रधानाचार्य नित्यानंद शर्मा कहते हैं कि एक परीक्षा होने से छात्रों के लिए आसानी हो सकती है, लेकिन विज्ञान जैसे विषयों के मूल्यांकन पर एक खुली बहस होनी जरूरी है, ताकि कोई सही राह सामने आ सके। जीजीआईसी की प्रधानाचार्या कमलेश भारतीय के अनुसार वैसे दसवीं में एक ही परीक्षक को कॉपी चेक करने में ज्यादा समस्या नहीं आनी चाहिए। लेकिन हो सकता है परीक्षा से पहले इसका भी समाधान निकाल लिया जाए(दैनिक जागरण,मेरठ,26.11.2010)।
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