मूल रूप से राजधानी रांची के रहनेवाले डा. रंजन को न चाहते हुए भी आर्थोपेडिक्स में पीजी (स्नातकोत्तर) की पढ़ाई के लिए बाहर जाना पड़ा। भुवनेश्र्वर के बुरला मेडिकल कालेज से एमबीबीएस करनेवाले डा. रंजन रिम्स में आर्थो पीजी की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन यहां यह व्यवस्था न होने से उन्हें कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कालेज में दाखिला लेना पड़ा। आज वे ग्रेटर नोएडा के शारदा ग्रुप आफ हास्पीटल में नौकरी कर रहे हैं। राजधानी के मारवाड़ी हाई स्कूल से शिक्षा प्राप्त करनेवाले डा. पंकज ने रिम्स से पीजी (मेडिसिन) की पढ़ाई तो की, लेकिन डाक्टरेट आफ मेडिसिन (डीएम) के लिए उन्हें कोलकाता जाना पड़ा। आज वे भी झारखंड में सेवा नहीं देकर नोएडा के कैलाश हास्पिटल में नौकरी कर रहे हैं। ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं। दूसरी तरफ, झारखंड के सरकारी अस्पतालों में सेवा देने के लिए विशेषज्ञ चिकित्सक मिल नहीं रहे हैं। पिछले दिनों राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य अभियान (एनआरएचएम) के तहत विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्ति हेतु आयोजित साक्षात्कार में डाक्टरों ने रुचि नहीं दिखाई। डेढ़ सौ पदों के लिए हुए साक्षात्कार में मात्र 76 विशेष चिकित्सक ही पहुंचे। पिछले वर्ष झारखंड लोक सेवा आयोग द्वारा 1,070 चिकित्सकों की बहाली में भी यही हाल हुआ। 900 चिकित्सक ही अनुशंसित किए जा सके। इनमें से तीन सौ ऐसे निकले, जिन्होंने या तो योगदान नहीं दिया या फिर शीघ्र ही नौकरी छोड़ दी। अब कोई यह न पूछे, ऐसा क्यों? प्रदेश में पीजी की पढ़ाई बदहाल है। दो मेडिकल कालेजों पीएमसीएच, धनबाद तथा एमजीएम, जमशेदपुर में पीजी की पढ़ाई ही नहीं हो रही है। दूसरी तरफ राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) में कई विभागों में पढ़ाई बंद है तो कुछ में पढ़ाई शुरू ही नहीं हो सकी। इसी वर्ष यहां एनेस्थेसिया की पढ़ाई बंद कर दी गई, क्योंकि चिकित्सक डा. जे प्रसाद के सेवानिवृत्त होने के बाद चिकित्सक की नियुक्ति ही नहीं हुई। काफी मशक्कत के बाद यहां आर्थोपेडिक्स की एक यूनिट में पढ़ाई की हाल ही में स्वीकृति मिली है। प्रदेश में प्रत्येक वर्ष तीनों मेडिकल कालेजों में 190 एमबीबीएस तैयार होते हैं, जिनमें से डेढ़ सौ को दूसरे राज्यों में पलायन के लिए मजबूर होना पड़ता है। मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया ने सभी मेडिकल कालेजों में पीजी की सीटें दोगुनी करने की स्वीकृति दी, जिसका फायदा भी राज्य सरकार नहीं उठा सकी। रिम्स में चिकित्सकों की नियुक्ति तो हुई, लेकिन अन्य दो मेडिकल कालेजों में यह भी नहीं हुआ। स्थायी निदेशक व प्राचार्य नहीं होने का भी प्रभाव पड़ता रहा है। पीएमसीएच में तो दस साल बाद हाल ही में स्थायी प्राचार्य की नियुक्ति हुई है। एक पहलू यह भी है कि प्रदेश में विशेष चिकित्सकों को मिलनेवाली सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं। एनआरएचएम के तहत होनेवाली नियुक्ति में चिकित्सकों का वेतन मात्र चालीस हजार रुपये निर्धारित किया गया है, जबकि सुरक्षा का सवाल उठा कर भी चिकित्सक यहां नहीं टिकते(नीरज अम्बष्ठ,दैनिक जागरण,रांची,18.11.2010)।
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