राज्य कर्मचारी एक बार फिर आंदोलन की राह पर हैं। कर्मचारी नेताओं ने सरकार को चेतावनी दी है कि 15 दिसम्बर तक उनकी मांगे न मानी गयी तो वह आंदोलन छेड़ने को मजबूर होंगे।
राज्य कर्मचारी-शिक्षक समन्वय मोर्चे के अध्यक्ष वीपी मिश्र तथा महामंत्री जेएन तिवारी ने कहा छठवें वेतनमान को लागू हुए चार साल बीत रहे हैं, पर अभी तक एक चौथाई विभागों में छठवां वेतनमान पूरी तरह से लागू नहीं हुआ। वेतन विसंगतियों को दूर करने के लिए रिजवी समिति का गठन 2008 में तीन महीने के लिए किया गया था। अब सवा दो साल पूरे हो रहे हैं। पर अभी भी 42 विभागों में वेतन विसंगतियां दूर ही नहीं हुई हैं। ऐसी परिस्थिति में कर्मचारी आंदोलन नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे।
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद का दूसरा गुट भी सरकार के रवैये से संतुष्ट नहीं है। परिषद के समन्वयक अमरनाथ यादव, अध्यक्ष, रामजी अवस्थी, एसपी तिवारी बीएल कुशवाहा, आरके निगम जैसे नेता कर्मचारियों की समस्याओं को लेकर लगातार सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। इन नेताओं का आरोप है कि लिपिक संवर्गीय हजारों कर्मचारियों के वेतन पुनरीक्षण का मामला वर्षो से लटका है। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को तृतीय श्रेणी के वेतन बैंड में रखने का निर्णय जुलाई में हो चुका है। उन्हें 1,800 के पे बैंड में रखा गया किन्तु तमाम निगमों के कर्मचारी आज भी इस लाभ से वंचित हैं। संयुक्त परिषद ने भी रिजवी समिति के औचित्य पर सवाल उठाया है। परिषद नेताओं ने कहा कि सवा दो साल में भी समिति कर्मचारियों का मामला नहीं निपटा सकी है। ऐसी समिति को समाप्त कर देना चाहिए और सरकार को स्वयं समस्याओं के बारे में फैसला करना चाहिए।
मुख्य सचिव ने बीते वर्ष जारी एक आदेश में कहा था कि हर महीने कर्मचारी नेताओं से वार्ता करने और उनकी समस्याओं को विभागीय स्तर पर ही सुलझाने कार्रवाई नियमित रूप से की जाए। कर्मचारी नेताओं का कहना है कि इस आदेश का कहीं पालन नहीं हो रहा है। कहीं भी कर्मचारियों से सीधे बात नहीं हो रही है ऐसे में समस्याओं का अम्बार बढ़ता जा रहा है। ऐसी स्थिति में उनके सामने आंदोलन करने के अलावा कोई चारा नहीं है। इन नेताओं ने भी मांगे न पूरी होने पर दिसम्बर में किसी समय आंदोलन पर जाने की चेतावनी दी है(दैनिक जागरण संवाददाता,लखनऊ,25.11.2010)।
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