विषय और क्षेत्र कोई भी हो, लेकिन किताब लिखने के बहाने कुछ भी लिखने और उसके छपने के दिन लदने वाले हैं। बच्चों और युवाओं के लिए लिखी जाने और छपने वाली पुस्तकों के मामले में तो खास एहतियात रखी जाएगी। उसके लिए अलग से एक स्वायत्तशासी राष्ट्रीय बाल साहित्य परिषद का गठन हो सकता है तो देश के पूरे प्रकाशन क्षेत्र को नियमों, कायदों और मर्यादाओं की मानक संहिता के दायरे में रखने के लिए पुस्तक प्रकाशन नियामक प्राधिकरण भी बन सकता है। सरकार देश में किताबों के प्रकाशन की भी एक नीति चाहती है। मंशा, सभी विषयों पर अच्छी से अच्छी किताबें उपलब्ध कराना है। उसके लिए राष्ट्रीय पुस्तक संबर्द्धन नीति-2010 का मसौदा तैयार है। सूत्रों के मुताबिक नई नीति के तहत आला दर्जे की पांडुलिपि के लिए होनहार लेखकों को प्रेरित व प्रोत्साहित किया जायेगा। प्रकाशकों से लेखकों के समयबद्ध भुगतान का तो ख्याल रखा ही जाएगा। प्रकाशकों को भी व्यावसायिक तौर-तरीकों के दायरे में रखने पर जोर होगा। जरूरत हुई तो लेखक व प्रकाशक के बीच पुस्तक का मूल्य तय करने के मामले में सरकारी प्राधिकरण सुझाव भी दे सकता है। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने राष्ट्रीय पुस्तक संवर्धन नीति तैयार करने के लिए इसी साल फरवरी में एक टास्क फोर्स का गठन किया था। उसने नीति का मसौदा तैयार कर दिया है, जिसे शिक्षा दिवस के मौके पर आगामी 11 नवंबर को सरकार की मंजूरी की उम्मीद है। सूत्र बताते हैं कि टास्क फोर्स ने भारतीय प्रकाशन जगत में लेखकों व प्रकाशकों के बीच की विसंगतियों को दूर करने और घटिया किताबों के प्रकाशन को रोकने लिए पुस्तक प्रकाशन नियामक प्राधिकरण बनाने की सिफारिश की है। टास्क फोर्स ने इसके लिए पुस्तक प्रकाशन के क्षेत्र में अमेरिकी व्यवस्था का हवाला दिया है। अमेरिका में इसके लिए सरकारी तंत्र तो नहीं है, लेकिन खुद प्रकाशकों ने ही प्रकाशन मानक बोर्ड बना रखा है। वह उन्हें हर नये प्रकाशन, मानकों व दूसरी सूचनाओं को उपलब्ध करा उनकी मदद करता है। इसके अलावा फर्जीवाड़े को रोकने के साथ ही प्रकाशकों व लेखकों के विवाद निपटाता है तो किताब खरीदने वालों के लिए उपभोक्ता संरक्षण आयोग का भी काम करता है। टास्क फोर्स ने बच्चों के लिए लिखी जाने वाली किताबों व साहित्य के मामले में खास एहतियात के मद्देनजर राष्ट्रीय बाल साहित्य परिषद के गठन की भी सिफारिश की है(राजकेश्वर सिंह,दैनिक जागरण,दिल्ली,8.11.2010)।
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