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16 नवंबर 2010

पंचकूलाःअदालती नोटिस से प्राईवेट स्कूलों में मचा हड़कंप

केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए शिक्षा के अधिकार कानून पर पंचकूला की एक अदालत द्वारा नोटिस थमाए जाने के बाद जिला प्रशासन एवं निजी स्कूलों में हड़कंप सा मच गया है। वे आनन-फानन में नोटिस के जबाव देने की तैयारी में जुट गए हैं। वहीं इस नोटिस ने उन स्कूल प्रबंधकों को भी सचेत कर दिया है जोकि शिक्षा के अधिकारी को लागू नहीं कर रहे। प्राइवेट स्कूल प्रबंधक इस कानून का शुरू से ही विरोध कर रहे थे। उनका मानना था कि इससे स्कूलों में काफी परेशानी होगी। मजबूरी का फायदा उठाते रहे स्कूल गौरतलब है कि मां-बाप अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा मुहैया करवाने के लिए प्राइवेट स्कूलों को अधिक तरजीह देते हैं और इसी मजबूरी का प्राइवेट स्कूल जमकर फायदा उठाते हैं। पहले स्कूल में दाखिले के समय, फिर किताबों के नाम पर तो कभी लेट फीस के नाम पर। चारों ओर से प्राइवेट स्कूल अभिभावकों की जेब काटते हैं। इन पर नकेल कसने में कोई भी प्रशासन सक्षम नजर नहीं आता। 

लुटने को मजबूर हैं अभिभावक 
स्कूलों में दाखिले शुरू होते ही अधिकतर निजी स्कूल संचालक जमकर दाखिला फीस और छह माह, तीन माह की फीस पहले ही वसूल कर लेते हैं। अभिभावक स्कूल संचालकों की इस कारगुजारी के कारण परेशान हैं, लेकिन अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए उनके हाथों लुटने को मजबूर होना पड़ता है। 

चंदगोटिया ने डाली थी याचिका 
एडवोकेट पंकज चंदगोटिया एवं उनकी पत्नी संगीता ने पंचकूला की अदालत में याचिका डालकर कहा था कि बच्चे के दाखिले की प्रक्रिया के दौरान बच्चों एवं माता-पिता को मानसिक आघात एवं तनाव से गुजरना पड़ता है। याचिका में बताया गया है कि उनके दो बच्चे हैं जिनकी उम्र 9 और 11 वर्ष है। उनके दाखिले के लिए उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि स्कूलों में दाखिले के लिए सरकार द्वारा बनाए नियमों और विनियमों के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है, जिसके कारण काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है और अभिभावकों को दाखिले के समय काफी भ्रम में रखा जाता है। स्कूल संचालकों ने की आनाकानी सरकार द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून बनाने के बाद स्कूल संचालक यही कह रहे थे कि यह कानून लागू नहीं होना चाहिए, क्योंकि इस कानून में गरीब, अमीर एवं मध्यम परिवारों के बच्चों को एक साथ बिठाया जाना है। इसलिए वे इस कानून को लागू करने में आनाकानी कर रहे थे। उनका कहना था कि यह कानून लागू तो कर दिया गया, लेकिन इसे जिस तरह अमलीजामा पहनाने की योजना बनाई गई हैं उसमें कई पेंच हैं। 

सिर्फ नारा बना सरकारी संदेश 
शिक्षाविदों का मानना है कि सरकार का सब पढ़ें सब बढें का अभियान सिर्फ नारा बनकर रह गया है। इसमें गरीब बच्चों को स्कूल लाया तो जा सकता है, लेकिन उन्हें पढ़ाना कितना मुश्किल है शायद इस बात का अंदाजा लगाना बड़ा ही मुशकिल है। आज के समय में इन गरीब बच्चों के परिवारजन इन्हें बचपन से दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में लगा देते हैं, पढ़ाई के बारे में सोचना भी इनके लिए असंभव है। ईडब्ल्यूएस का सही पात्र कौन अदालत में डाली याचिका में पूछा गया कि यह कैसे स्पष्ट किया जाएगा जिस बच्चे को ईडब्ल्यूएस कोटा के तहत प्रवेश दिया जा रहा है, वह वाकई उसका पात्र है और स्कूल संचालक ईडब्ल्यूएस कोटा चरणबद्ध तरीके से लागू कर रहे हैं। 

बच्चों से वसूली जा रही अधिक फीस 
याचिका में यह भी कहा गया है कि निजी स्कूल ईडब्ल्यूएस कोटा के कार्यान्वयन के कारण फीस में होने वाले नुकसान को पूरा करने के लिए प्राइवेट बच्चों से वसूल करते हैं, इसलिए इस बारे में प्रशासन एवं स्कूल अपनी स्थिति स्पष्ट करें। अब प्राइवेट स्कूल इस कानून को लागू करने में अपनी आनाकानी नहीं बरतेंगे। पूरी तरह लागू है कानून इस बारे में भवन विद्यालय की पिं्रसीपल शशि बैनर्जी ने कहा कि उन्हें आज दोपहर बाद नोटिस मिला। इस नोटिस को पढ़ने के बाद ही जबाव दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि हमारा स्कूल शिक्षा के अधिकार कानून को पूरी तरह लागू कर रहा है। समय-समय पर दिए जाते निर्देश इस संबंध में जिला शिक्षा अधिकारी नलिनी मिमानी ने कहा कि प्रशासन द्वारा समय-समय पर प्राइवेट स्कूलों का निरीक्षण किया जाता है और उन्हें हिदायतें भी जारी की जाती हैं कि सरकार के नियमानुसार ही काम करें(दैनिकजागरण,पंचकूला,16.11.2010)।

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