मिनी आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को बढ़े मानदेय के लिए लंबा इंतजार करना होगा। इस बारे में महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रस्ताव पर वित्त ने रोड़ा अटकाते हुए अगले वित्तीय वर्ष के लिए टाल दिया है। नतीजा नाममात्र का मानदेय पा रही कार्यकत्रियों की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। सूबे में महिलाओं के विकास को किए जा रहे कागजों पर ही दिख रहे हैं। अब सूबे के मिनी कार्यकत्रियों को ही ले लिया जाए। अरसे से इन्हें 750 रुपये ही मानदेय मिलता आ रहा है यानि कि 25 रुपये रोजाना। खास बात यह है कि कार्यकत्रियों को यह राशि भी केंद्र की ओर से दी जा रही है। राज्य सरकार का इसमें कोई योगदान नहीं है। निदेशालय स्तर पर इनकी दशा में सुधार लाने को कई सालों से प्रयास किए जा रहे हैं पर मामला शासन स्तर पर अटक जा रहा है। करीब एक साल पूर्व भी इस दिशा में कोशिश की गई, विभाग के प्रस्ताव पर हाल ही में शासन में कार्यवाही भी शुरू हुई लेकिन एक बार फिर इसे फिर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। तर्क दिया जा रहा है कि कई मिनी आंगनबाड़ी केंद्रों को आंगनबाड़ी केंद्र में परिवर्तित किए जाने की योजना है। इसे अगले साल मार्च से पूर्व पूरा कर लिया जाएगा। लिहाजा इससे पहले मानदेय बढ़ाने में कई प्रकार की तकनीकी दिक्कतें आएंगी। कहा यह भी जा रहा है कि इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ेगा। अब यहां एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो रहा है कि हाल ही में मुख्यमंत्री द्वारा राज्य स्थापना दिवस पर की गई कई घोषणाएं के अनुपालन से सरकारी खजाने पर करीब एक हजार करोड़ का बोझ और बढ़ेगा। यही नहीं, सरकार जब कर्मियों के साथ विधायकों व मंत्रियों के बढ़े वेतन और भत्तों का बोझ उठा सकती है पर कार्यकत्रियों पर खर्च होने वाली धनराशि का नहीं। अब यदि कार्यकत्रियों को कुछ देने की बात की गई तो खजाने की माली हालत का रोना रोया जा रहा है। सचिव (महिला एवं बाल विकास) मनीषा पंवार के मुताबिक मिनी कार्यकत्रियों की दशा सुधारने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन मानदेय में बढ़ोतरी अगले वित्तीय वर्ष में संभव हो सकेगा। इस मामले में केंद्र से भी आग्रह किया जाएगा(दैनिक जागरण,देहरादून,12.11.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।