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06 नवंबर 2010

प्रमोशन चाहिए तो ऑफिस आएँ बन-ठन कर

क्या प्रोफेशनल करियर की राह में आपका पहनावा एक्सेलेरेटर या ब्रेक का काम कर सकता है? ऐसे कई किस्से आपने भी सुने होंगे कि आपके किसी दोस्त के दोस्त को इस वजह से नौकरी से हाथ धोना पड़ गया क्योंकि उसकी जुराबों का रंग उसके कपड़ों के रंग जैसा नहीं था या किसी सुदर्शना युवती को उसके अच्छे नैन-नक्श के कारण प्रमोशन मिल गई, जबकि उससे काबिल युवक को नजरंदाज कर दिया गया। ईटी और सिनोवैट ने यह पता लगाने के लिए एक सर्वे किया कि पहनावा और उसके चलते बनने वाली शख्सियत का प्रोफेशनल करियर की ग्रोथ में अहमियत होती है या नहीं।

सर्वे में शामिल कॉरपोरेट जगत के 71 फीसदी अधिकारियों ने कहा कि आप जो पहनते हैं, उसका असर कॉरपोरेट गलियारों में आपकी रफ्तार पर पड़ता है। चेन्नई जैसे कुछ शहरों में वेशभूषा और चाल-ढाल का मसला काफी अहम पाया गया। चेन्नई में 99 फीसदी एग्जिक्यूटिव्स ने 'बेहतर पोशाक, दमदार प्रमोशन' के मंत्र पर मुहर लगाई। हालांकि, 48 फीसदी ने ही ऐसे किसी मामले की जानकारी होने की बात कही, जिसमें किसी को उसकी सूरत या पहनावे के आधार पर कॉरपोरेट गलियारों की दौड़ में नजरंदाज किया गया हो। कॉर्नेल यूनिवर्सिटी की ओर से किए गए एक अध्ययन में पाया गया था कि जब किसी श्वेत महिला के वजन में 64 पौंड का इजाफा हो जाता है, तो उसके वेतन-भत्तों में 9 फीसदी कमी हो जाती है।

शरीर बेडौल हो या पहनावा चुस्त-दुरुस्त न हो तो आप पर आलसी, भोंदू या इस तरह के कुछ विशेषण चस्पा किए जा सकते हैं। एक अग्रणी वित्तीय सेवा कंपनी के एचआर प्रोफेशनल दिनकर देवगन ने कहा, 'पहनावे के कारण ऑफिस में आपसे भेदभाव हो न हो, लेकिन इसकी वजह से आप दूसरों से अलग तो नजर आते ही हैं।' एबीसी कंसल्टेंट्स के सीईओ शिव अग्रवाल ने कहा, 'अगर दो लोगों की काबिलियत एक जैसी हो तो उनके पहनावे और उनकी शख्सियत का मसला अहम हो जाता है।' इस टैलेंट सर्च फर्म के मुखिया ने कहा, 'जब आप सीवी भेजते हैं, उसी वक्त से आपकी छवि का मसला अहम हो जाता है। आपसे मुलाकात होने से पहले ही आपकी शख्सियत के बारे में अंदाजा लगा लिया जाता है।'

मैनपावर इंडिया में ऑर्गनाइजेशनल लर्निंग एंड मार्केटिंग के हेड नम्र किशोर ने कहा कि कुछ उद्योग क्षेत्रों में व्यक्ति की छवि को अधिक तवज्जो दी जाती है, खासतौर से 'विमानन और बैंकिंग में, जहां ग्राहक से ज्यादा संपर्क की जरूरत होती है।' उनके इस दावे पर हमारा सर्वे मुहर लगाता है। 79 फीसदी बहुराष्ट्रीय कंपनियां और 65 फीसदी देसी कंपनियों ने माना कि कपड़े आपके करियर को चमका सकते हैं। किशोर ने हालांकि कहा, 'बात सिर्फ कपड़ों से तय नहीं होती। आप जिस ब्रांड से जुड़े हों, उसके अनुसार आपकी छवि होनी चाहिए।'

क्या करियर को पहनावे और चाल-ढाल से रफ्तार मिलने की बात पुरुषों और महिलाओं पर एकसमान रूप से लागू होती है? अग्रवाल ने कहा, 'यह लिंग का मुद्दा नहीं है।' इसमें कोई शक नहीं कि महिलाएं आकर्षण का सहज केंद्र होती हैं, लेकिन किशोर ने कहा कि सूरत के आधार पर लैंगिक भेदभाव नहीं होता है। हालांकि, हमारे सर्वे से एक अलग तस्वीर सामने आई। 54 फीसदी लोगों ने कहा कि छवि को लेकर पुरुषों की तुलना में महिलाओं से अधिक सजगता की उम्मीद की जाती है। मुंबई में 78 फीसदी और चेन्नई में 74 फीसदी लोगों ने कहा कि बात अगर पहनावे और अच्छा दिखने की हो तो महिलाओं से अधिक उम्मीद पाली जाती है और इसके चलते उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ता है।

दिल्ली में 45 फीसदी एग्जिक्यूटिव्स ने कहा कि शक्ल-सूरत के आधार पर पुरुषों से अधिक भेदभाव किया जाता है। बेहतर दिखने वालों को तरजीह देने के पीछे तमाम मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं। मैक्स हेल्थकेयर में मानसिक स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख डॉ. समीर पारिख ने कहा कि यह मेंटल स्टीरियोटाइपिंग का मामला है। हमारा सर्वे बताता है कि 79 फीसदी कंपनियों (एमएनसी में 82 फीसदी) ने माना कि बेहतर पहनावे का मतलब मजबूत आत्मविश्वास है। हालांकि, विज्ञापन जगत के दिग्गज पीयूष पांडे इसे बेतुका मानते हैं। ओगिल्वी एंड मैथर्स, साउथ एशिया के एग्जिक्यूटिव चेयरमैन और क्रिएटिव डायरेक्टर पांडे ने कहा, 'मेरे बारे में मेरा काम बोलेगा, न कि मेरी शर्ट।'

लेकिन सबकी राय ऐसी नहीं है। तभी तो मारुति उद्योग के प्रवक्ता ने कर्मचारियों के लिए यूनिफॉर्म की वकालत की। मारुति उद्योग में यही नियम है। उन्होंने कहा, 'यूनिफॉर्म होने से भेदभाव की गुंजाइश ही खत्म हो जाती है।' बावजूद इसके, काबिलियत के रंग के आगे हर पहनावा फीका है। खराब कपड़ों के चलते कोई कंपनी किसी को नौकरी से नहीं निकालती है। किशोर कहते हैं, 'आपके हाथ से नौकरी नहीं जाएगी। हां, प्रमोशन का कोई मौका आप चूक सकते हैं।'(नूपुर अमरनाथ,इकनॉमिक टाइम्स,25.10.2010)

2 टिप्‍पणियां:

  1. अगर सिर्फ़ आपकी वेशभूषा ही आप को परखने का एकमात्र मापदंड बन जाए तो क्या यह मेधा का तिरस्कार न होगा? विचारोत्तेजक आलेख. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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