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19 नवंबर 2010

स्कूल बच्चों के लिए है सुरक्षा कर्मियों के लिए नहीं:सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार की नक्सल प्रभावित इलाकों के स्कूलों में सुरक्षा बलों को ठहराने और पढ़ाने का काम कहीं और करने की व्यवस्था फौरन बंद करने को कहा है। मौजूदा समय में स्कूलों में रह रहे सुरक्षा बलों को हटाने का निर्देश दिया है।

सलवा जुडूम से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी और जस्टिस एसएस निज्जर की बेंच ने कहा कि वैकल्पिक स्थानों पर स्कूल चलाने की बात नहीं मानी जा सकती।

छत्तीसगढ़ सरकार का पक्ष रखते हुए वकील हरीश साल्वे और अतुल झा ने कहा कि वे प्रशासन से बात कर इस बारे में जवाब पेश करेंगे। दूसरी ओर अतिरिक्त महाधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने जजों की बात का समर्थन करते हुए कहा कि इसी तरह का आदेश पहले पूर्वोत्तर राज्यों को दिया जा चुका है। वहां भी सुरक्षा बलों को स्कूलों में ठहराया गया था।

याची को सुरक्षा के निर्देश
बेंच ने राज्य सरकार से याची पूर्व विधायक मनीष कुरजम को सुरक्षा मुहैया कराने को कहा है। उन्होंने सलवा जुडूम और कुछ कॉपरेरेट समूहों से जान का खतरा बताया था।

कुरजम ने सलवा जुडूम के खिलाफ वामपंथी नेता करतम जोगा के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। इन्हें अप्रैल में हुए हमले में 76 सीआरपीएफ जवानों की मौत के सिलसिले में सितंबर में गिरफ्तार भी किया गया था।

छत्तीसगढ़ सरकार का पक्ष:
राज्य सरकार की ओर से 28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट को जवाब दिया गया कि राज्य में सलवा जुडूम को खत्म कर दिया गया है। यही वजह है कि माओवादी संगठन और नक्सली हाल के दिनों में स्कूल, पंचायत भवन और अस्पतालों को निशाना बना रहे हैं।

नाम बदलकर समर्थन जारी है
याचिकाकर्ताओं की दलील है कि राज्य सरकार अब भी सलवा जुडूम को मजबूत करने में रखी है। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के कारण इस संगठन का नाम बदल दिया गया है। लेकिन सरकार इसकी जानकारी छिपा रही है(दैनिक भास्कर,दिल्ली-छत्तीसगढ़,19.11.2010)।


इसी विषय पर नई दुनिया की रिपोर्ट भी देखिएः
सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसग़ढ़ के नक्सली हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में स्थित स्कूलों की इमारतों में अर्द्धसैनिक बलों को ठहराने और विद्यार्थियों के लिए अलग वैकल्पिक व्यवस्था करने की राज्य सरकार की दलील से असहमति व्यक्त की है। अदालत ने स्पष्ट किया कि छात्रों को प़ढ़ाई का अनुकूल माहौल उपलब्ध कराने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था नहीं बल्कि स्कूल परिसर ही सर्वथा उचित स्थान है।

न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी और सुरिंदर सिंह निज्जर की दो सदस्यीय खंडपीठ ने गुरुवार को सलवा जुडूम के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता नंदिनी सुंदर और हिमांशु कुमार की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान छत्तीसग़ढ़ सरकार के दृष्टिकोण से असहमति व्यक्त की। न्यायाधीशों ने इस मामले की सुनवाई १५ दिसंबर के लिए स्थगित करते हुए राज्य सरकार से कहा कि स्कूल की इमारतों में अर्द्धसैनिक बलों के ठहरने के पक्ष में उसकी इस दलील को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

इससे पहले राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और वकील अतुल झा का कहना था कि चूंकि नक्सली हिंसा से प्रभावित जिालों में स्थित स्कूलों में अर्द्धसैनिक बलों की टुक़िड़यां डेरा डाले हुए हैं, इसलिए छात्रों की प़ढ़ाई हेतु वैकल्पिक व्यवस्था की गई है।

इस बीच न्यायालय ने पूर्व विधायक मनीष कुरजम को फिर से सुरक्षा प्रदान करने के सवाल पर विचार करने के लिए कहा है। मनीष ने सलवा जुडूम कार्यकर्ताओं से अपनी जान को खतरा बताते हुए समुचित सुरक्षा की मांग की है। अर्द्धसैनिक बलों पर गत छह अप्रैल को हुए हमले के सिलसिले में मनीष कुरजम को नक्सलियों से सहानुभूति रखने वाले कर्तम जोगा के साथ १४ सितंबर को गिरफ्तार किया गया था। इस हमले में सीआरपीएफ के ७४ जवान शहीद हो गए थे। मनीष को गत १४ सितंबर को वामपंथी विचार धारा वाले कर्तम जोगा के साथ गिरफ्तार किया गया था। इससे पहले २८ अक्टूबर को छत्तीसग़ढ़ की रमन सिंह सरकार ने न्यायालय में दावा किया था कि सलवा जुडूम अब निष्प्रभावी है लेकिन नक्सली और माओवादी अब स्कूलों, पंचायत घरों और अस्पतालों को अपना निशाना बना रहे हैं। दूसरी ओर, आदिवासियों की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का दावा है कि राज्य में सलवा जुडूम को अब नए नाम से सक्रिय किया जा रहा है। छत्तीसग़ढ़ सरकार ने दावा किया था कि राज्य में नौ महीने में नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच १३४ मुठभे़ड़ों में कम से कम १६० सुरक्षाकर्मी शहीद हुए हैं। राज्य सरकार का यह भी कहना था कि माओवादी आदिवासी इलाकों में स्कूलों, पंचायत घरों और अस्पतालों को अपना निशाना बना रहे हैं और अब तक वे एक सौ से अधिक स्कूली इमारतों, ७४ पंचायत घरों और तीन अस्पतालों को क्षतिग्रस्त कर चुके हैं।

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