मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा है कि झारखंड में बोली जानेवाली सभी भाषाओं के साहित्य के प्रचार और साहित्यकारों के सम्मान के लिए एक परिषद का गठन होगा. उन्होंने कहा कि ज्ञान प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है. लेकिन जन्म देनेवाली मां दूसरी नहीं हो सकती.
उसी प्रकार मातृभाषा भी दो नहीं हो सकती. यह कभी नहीं बदलनेवाली इकलौती विरासत है. इसकी सुरक्षा और विकास पर ध्यान देना होगा. श्री मुंडा 25 नवंबर को साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली और रांची विश्वविद्यालय जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित समकालीन बदलते भारतीय समाज में मातृभाषाओं की भूमिका विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उदघाटन समारोह में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि किसी भाषा के विकास का अर्थ दूसरी भाषा का विरोध करना नहीं है. अनुवाद के युग में परस्पर अपने विचारों के आदान-प्रदान से हम अपनी राष्ट्रीय एकता एवं सामाजिक समरसता को बचा कर रख सकते हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि जनजातीय भाषाओं की कठिनाइयों को दूर किया जायेगा.
असमिया सलाहकार समिति के लक्ष्मीनंदन बोरा ने कहा कि अंगरेजी का तेजी से विकास हुआ है. स्थिति यह है कि लोग बच्चों को मातृभाषा नहीं, अंगरेजी सिखा रहे हैं. मूल्यों की रक्षा के लिए मातृभाषा को जानना जरूरी है. बांग्ला सलाहकार समिति के मानवेंद्र बंद्योपाध्याय ने कहा कि साहित्य-व्यक्तित्व व व्यक्तित्व-साहित्य में अन्योन्याश्रय संबंध हैं. अपनी भाषा के प्रति सजग रहने की जरूरत है.
इससे पूर्व साहित्य अकादमी के क्षेत्रीय सचिव रामकुमार मुखोपाध्याय ने कहा कि साहित्यकार ही समाज व परंपरा को जीवित रखते हैं. जिस तरह मां का दूध मानसिक व शारीरिक विकास के लिए जरूरी है, किसी भी स्थान व समाज के विकास के लिए मातृभाषा उसी तरह जरूरी है. प्रमोदिनी हांसदा व कुमारी बासंती ने भी अपने विचार रखे. स्वागत विभागाध्यक्ष डॉ गिरिधारी राम गोंझू व रामकुमार मुखोपाध्याय ने और संचालन मैथिली सलाहकार समिति के विद्यानाथ झा विदित ने किया(प्रभात ख़बर,रांची,26.11.2010).
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