दफ्तरों या काम की दूसरी जगहों पर महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करें, इसके लिए सरकार ने कानून बनाने का प्रस्ताव रखा है। यौन उत्पीड़न से सुरक्षा दिलाने वाले बिल को कैबिनेट ने संसद में विंटर सेशन में पेश करने को आज मंजूरी दे दी।इस विधेयक में कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ कामकाज के प्रतिकूल माहौल तथा महिला के रोजगार के भविष्य को धमकी या प्रलोभन को भी यौन उत्पीड़न माना जाएगा। इस विधेयक में कार्यस्थलों में काम करने वाली महिलाएं ही नहीं, बल्कि वहां आने वाली महिलाओं, ग्राहकों, प्रशिक्षुओं, तदर्थ तथा दैनिक वेतन पर काम करने वाली महिलाओं को भी दायरे में लाया गया है। कालेज एवं विश्वविद्यालयों में छात्रों तथा शोधार्थियों एवं अस्पताल में महिला मरीजों को भी इस विधेयक के दायरे में लाया गया है। इसके अलावा असंगठित क्षेत्र में भी यह विधेयक लागू होगा। विधेयक में महिलाओं की शिकायतों को दूर करने के लिए एक आन्तरिक विकास समितति गठित करने का भी प्रावधान है।
वर्ष 2005 की आर्थिक जनगणना के अनुसार चार करोड़ 18 लाख 30 हजार कार्यस्थलों में से चार करोड़ 12 लाख 20 हजार कार्यस्थलों पर 10 से कम महिलाएं काम करती हैं। इसलिए विधेयक में स्थानीय शिकायत निवारण समिति का प्रावधान किया गया है। यह समिति जिलाधिकारी या नियोक्ता की सिफारिशों की जांच पड़ताल करेगी। अगर कोई दफ्तर इस विधेयक के प्रावधानों को नहीं मानता है तो उस पर 50 हजार रुपए तक का दंड किया जा सकता है।
विधेयक के अनुसार महिलाओं को जांच के दौरान अगर किसी तरह के हमले या धमकी की आशंका है तो वह अपना तबादला करवा सकती है या प्रताड़ित करने वाले व्यक्ति का भी तबादला करवा सकती हैं या फिर खुद बीमारी की छुट्टी पर जा सकती है। विधेयक में यौन उत्पीड़न के झूठे तथा दुर्भाग्यपूर्ण शिकायतों के खिलाफ रक्षा का भी प्रावधान है। अगर कोई अपनी शिकायतों को सही ठहराने के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं दे पाता है तो वह सजा का भागीदार नहीं होगा।
केन्द्रीय प्रतिष्ठानों में इस कानून को लागू करना केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है। जबकि राज्यों में राज्य सरकारों की जवाबदेही होगी। राज्य सरकार तथा केन्द्र सरकार प्रस्तावित विधेयक की निगरानी की जांच करेगी तथा कार्मिक रिपोर्ट में उनकी जानकारी देनी होगी। विधेयक के तहत इसके क्रियान्वयन की रिपोर्ट नियोक्ता को तैयार करनी होगी तथा उस संबंध में आंकडों को भी ध्यान में रखना होगा।
यह बिल लंबे समय से अटका था। इसकी खास बातें :
वर्ष 2005 की आर्थिक जनगणना के अनुसार चार करोड़ 18 लाख 30 हजार कार्यस्थलों में से चार करोड़ 12 लाख 20 हजार कार्यस्थलों पर 10 से कम महिलाएं काम करती हैं। इसलिए विधेयक में स्थानीय शिकायत निवारण समिति का प्रावधान किया गया है। यह समिति जिलाधिकारी या नियोक्ता की सिफारिशों की जांच पड़ताल करेगी। अगर कोई दफ्तर इस विधेयक के प्रावधानों को नहीं मानता है तो उस पर 50 हजार रुपए तक का दंड किया जा सकता है।
विधेयक के अनुसार महिलाओं को जांच के दौरान अगर किसी तरह के हमले या धमकी की आशंका है तो वह अपना तबादला करवा सकती है या प्रताड़ित करने वाले व्यक्ति का भी तबादला करवा सकती हैं या फिर खुद बीमारी की छुट्टी पर जा सकती है। विधेयक में यौन उत्पीड़न के झूठे तथा दुर्भाग्यपूर्ण शिकायतों के खिलाफ रक्षा का भी प्रावधान है। अगर कोई अपनी शिकायतों को सही ठहराने के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं दे पाता है तो वह सजा का भागीदार नहीं होगा।
केन्द्रीय प्रतिष्ठानों में इस कानून को लागू करना केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है। जबकि राज्यों में राज्य सरकारों की जवाबदेही होगी। राज्य सरकार तथा केन्द्र सरकार प्रस्तावित विधेयक की निगरानी की जांच करेगी तथा कार्मिक रिपोर्ट में उनकी जानकारी देनी होगी। विधेयक के तहत इसके क्रियान्वयन की रिपोर्ट नियोक्ता को तैयार करनी होगी तथा उस संबंध में आंकडों को भी ध्यान में रखना होगा।
यह बिल लंबे समय से अटका था। इसकी खास बातें :
किसको मिलेगी सुरक्षा :
न सिर्फ एम्प्लॉयी महिला, बल्कि काम की जगह पर आने वाले किसी भी महिला को। चाहे वह क्लाइंट हो, कस्टमर हो, अप्रैंटिस हो या डेली वेज वर्कर। कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों में स्टूडेंट्स और रिसर्च स्कॉलर के साथ अस्पतालों में महिला पेशंट्स को भी इस दायरे में शामिल हैं। नौकरानियों को बिल नहीं कवर करेगा। कानून बनने पर इसकी जद में सभी कंपनियां होंगी, चाहे वे सरकारी हों या प्राइवेट, या फिर काम असंगठित क्षेत्र से ही क्यों न जुड़ा हो।
किसे कहेंगे यौन उत्पीड़न :
किसी तरह से शारीरिक संपर्क या इसका प्रयास, सेक्सुअल डिमांड या कॉमेंट, अश्लील सामग्री दिखाने के अलावा किसी भी तरह की शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक हरकत, जो सेक्सुअल किस्म की हो। महिला को रोजगार पर रखने का वादा या हटाने की धमकी या काम के माहौल को खराब करना भी यौन उत्पीड़न के दायरे में आएगा।
कैसे होगी शिकायत :
हर एम्प्लॉयर को आंतरिक शिकायत समिति बनानी होगी। हालांकि 10 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों के लिए यह मुमकिन नहीं होगा। जिला स्तर पर भी लोकल शिकायत समिति बनेगी। लोकल समिति जांच के बाद एम्प्लॉयर या जिला अफसर को कार्रवाई की सिफारिश करेगी। समितियों को 90 दिन में जांच पूरी करनी होगी। समितियों की सिफारिशों पर अमल के लिए एम्प्लॉयरों को 60 दिन मिलेंगे। एम्प्लॉयर अपनी सालाना रपट में दाखिल केसों और निपटारों का ब्यौरा देंगे। केंद और राज्य सरकारें इस पर नजर रखेंगी।
क्या मिलेगी सजा :
सर्विस रूल के मुताबिक समितियां सजा तय करेंगी। जो एम्प्लॉयर प्रावधानों का पालन नहीं करेंगे, उन पर 50 हजार रुपये तक जुर्माना लगाने का प्रावधान है। जांच के दौरान महिला को खतरा हो सकता है, सो वह चाहे तो अपना ट्रांसफर करा ले या आरोपी का। वह छुट्टी भी मांग सकती है। फर्जी शिकायतों से निपटने का भी प्रावधान है। लेकिन शिकायत को साबित न कर पाने या पर्याप्त सबूत न होने पर महिला को सजा नहीं दी जा सकेगी(नवभारत टाइम्स डॉट कॉम तथा हिंदुस्तान लाईव डॉट कॉम,4.11.2010 में प्रकाशित खबरों पर आधारित)।
जैन्टलमैन तो होना ही चाहिये..
जवाब देंहटाएंसुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'
आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को दीपावली पर्व की ढेरों मंगलकामनाएँ!
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