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28 नवंबर 2010

भाषा में उलझी थानों को जोड़ने की कोशिश

देश भर के सभी 14 हजार थानों के दस्तावेजों और रिकार्ड को पूरे पुलिस महकमे के लिए ऑनलाइन मुहैया करवाने की बेहद महत्वाकांक्षी योजना हिंदुस्तान की भाषाओं के तार में उलझ कर अटक गई है। योजना के मुताबिक अपराध और अपराधी पड़ताल तंत्र (सीसीटीएनएस) की इस व्यापक मुहिम को 16 महीने के अंदर पूरा कर लिया जाना है, लेकिन अब तक इसका कोर एप्लीकेशन साफ्टवेयर (सीएएस) ही तैयार नहीं हो सका है। इस योजना की तरक्की के बारे में पूछे जाने पर गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि इसका कोर एप्लीकेशन साफ्टवेयर (सीएएस) अभी विकसित नहीं किया जा सका है। इसे अंग्रेजी के अलावा संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज सभी 18 भाषाओं में काम करने लायक बनाना है। इस सूची में हिंदी के अलावा असमी, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयाली, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उडि़या, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू को भी राजकीय भाषा का दर्जा हासिल है। खास कर दक्षिण के कई राज्यों में हिंदी या अंग्रेजी की बजाय सिर्फ एक स्थानीय भाषा को ही राजकीय भाषा का दर्जा है। साफ्टवेयर विकसित करने का काम इस साल 21 जून को आईटी कंपनी विप्रो को दिया गया था। हालांकि अधिकारी बताते हैं कि इसके तहत थानों और पुलिस दफ्तरों में सूचना तकनीक ढांचे को विकसित करने का काम तेजी से चल रहा है। 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में राज्य परियोजना प्रबंधन सलाहकार (एसपीएमसी) का चयन हो चुका है। इसी तरह इस महीने की 15 तारीख तक दिल्ली में 4,905, उत्तर प्रदेश में 5,852, पंजाब में 11,000, राजस्थान में 9,947 और हरियाणा में 5,767 पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। साफ्टवेयर विकसित करने वाली टीम के एक सदस्य ने बताया कि इसे जांच के लिए अधिकतम उपयोगी बनाया जा रहा है। इसमें प्राथमिक सूचना रिपोर्ट, तारीख, बीट एरिया या मामले के प्रकार के आधार पर तो सर्च करने की व्यवस्था होगी ही, साथ ही अपराधी, संदिग्ध या पीडि़त के बारे में भी पूरी सूचना हासिल की जा सकेगी। दो हजार करोड़ की इस योजना के पूरा होने के बाद देश के किसी भी हिस्से में मौजूद जांच अधिकारी बटन दबाते ही अपराधियों की तस्वीर और उनकी अंगुलियों के निशान सहित उसका पूरा बायोमेट्रिक ब्योरा देख सकेगा। ये आंकड़े जेल, अदालत, आव्रजन और पासपोर्ट दफ्तरों के रिकार्ड से भी जोड़ दिए जाएंगे। ये सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय जैसी दूसरी जांच एजेंसियों और आइबी और रॉ जैसी खुफिया एजेंसियों के लिए भी मुहैया होंगे(मुकेश केजरीवाल,दैनिक जागरण,दिल्ली.28.11.2010)।

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