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14 दिसंबर 2010

मध्यप्रदेशःदीक्षांत समारोह की पोशाक बदलेगी

विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह में अंग्रेजों की गुलामी याद दिलाने वाले गाउन और केप अब प्रदेश में ज्यादा दिन नहीं टिक सकेंगे। अचानक विवादित बनी इस वेशभूषा की प्रदेश से रवानगी के लिए रास्ता बनने लगा है। इसका माध्यम बनेगा प्रदेश में खुलने वाला हिंदी विश्वविद्यालय। अपनी स्थापना के साथ ही हिंदी विश्वविद्यालय दीक्षांत समारोह को नई पोशाक देने का काम भी करेगा। दीक्षांत समारोह के लिए नई वेशभूषा पर राज्य शासन ने विचार भी शुरू कर दिया है। इसकी जिम्मेदारी भी हिंदी विश्वविद्यालय के लिए अधिनियम का प्रारूप तैयार कर रही उच्च स्तरीय कमेटी को सौंपी गई है। कमेटी की हाल ही में हुई बैठक में विश्वविद्यालय के नामकरण, पाठ्यक्रम, पदों की संरचना, वित्तीय अधिकार आदि के साथ ही दीक्षांत समारोह के अधिनियम पर भी विचार किया गया। उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने कमेटी के सदस्यों से दीक्षांत समारोह पर विशेष रूप से चर्चा की। इस चर्चा के आधार पर कमेटी ने दीक्षांत समारोह के लिए अधिनियम पर विचार भी किया। बताया जाता है कि कमेटी ने विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के लिए अधिनियम का खाका तैयार करने के साथ ही इसमें पहनी जाने वाली पोशाक पर भी अपनी राय दी है। इसका प्रारूप राज्य शासन को सौंप दिया गया है। कमेटी की अगली बैठक में इसे अंतिम रूप दे दिया जाएगा। हिंदी विश्वविद्यालय के लिए होने वाली यह मेहनत प्रदेश के अन्य सभी विश्वविद्यालयों के भी काम आएगी। इसके आधार पर प्रदेश के अन्य विवि अपने अधिनियम में संशोधन कर सकेंगे। उल्लेखनीय है कि दीक्षांत समारोह में पहनी जाने वाली पोशाक को लेकर पिछले वर्षो में विवाद की स्थिति बनी है। पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनीस ने इसका सबसे पहले विरोध किया था। यह विरोधी स्वर लगातार बढ़ते रहे हैं। उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के अलावा केंद्रीय वन मंत्री जयराम रमेश ने तो राजधानी स्थित आईआईएफएम के दीक्षांत समारोह में गाउन ही उतार फेंका था। मगर कोई भी विवि अब तक इसका विकल्प नहीं खोज सके हैं। इसकी वजह है विश्वविद्यालयों के अधिनियम। असल में अधिनियम में ही दीक्षांत समारोह के लिए यह पोशाक दर्ज है। इसे बदलने अधिनियम में भी संशोधन जरूरी है। हिंदी विवि के लिए पोशाक तय होने के बाद अन्य विवि इसे अंगीकार कर सकते हैं(प्रवीण शर्मा,दैनिक जागरण,भोपाल,14.12.2010)।

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