क्या आरक्षण नियमों का लाभ अन्य राज्यों के आरक्षित वर्ग को मिल सकता है? केंद्र और राज्य शासन के आरक्षण नियमों में भले ही इसका जवाब नकारात्मक हो, लेकिन उच्च शिक्षा विभाग के सुस्त और लापरवाह अफसरों ने प्रदेश के आरक्षित वर्ग का यह हक भी बाहरी छात्र-छात्राओं को बांट डाला। अन्य राज्यों के उम्मीदवारों को भी आरक्षण नियमों का लाभ देते हुए न्यूनतम अंकों में पांच फीसदी की छूट देते हुए प्रवेश दे दिए हैं। अब अपनी गलती को छुपाने के लिए इन अपात्रों को परीक्षा में शामिल करने विवि पर दबिश बनाई जा रही है। उच्च शिक्षा विभाग ने यह लापरवाही बीएड काउंसलिंग में की है। सत्र 2009-10 के लिए कराई गई ऑन लाइन काउंसलिंग में शासन ने प्रदेश के आरक्षित वर्ग को मिलने वाली रियायतें की बरसात अन्य राज्यों के छात्र-छात्राओं पर भी कर डाली। चार महीने चली काउंसलिंग के दौरान आरक्षण नियमों के प्रावधानों पर न तो उच्च शिक्षा विभाग ने ध्यान दिया और न एमपी ऑनलाइन के स्टाफ ने ही कोई सावधानी दिखाई। इसका नुकसान यह हुआ कि प्रदेश के नागरिकों के साथ-साथ अन्य राज्यों के अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़ा वर्ग के छात्रों को भी न्यूनतम अंकों में पांच प्रतिशत की छूट दे दी गई। पूरे प्रदेश में ऐसे प्रवेशों की बड़ी संख्या है। अब परीक्षा की तैयारी शुरू होते ही विश्वविद्यालयों ने इन छात्र-छात्राओं को अपात्र घोषित कर परीक्षा से बाहर करना शुरू कर दिया है।
गलती छुपाने दिखाई सक्रियता :
विश्वविद्यालयों द्वारा जानकारी भेजते ही विभाग ने सक्रियता दिखाते हुए एक आदेश जारी कर दिया है। इसमें गलती सुधारने की बजाय विभाग ने इन अपात्र छात्र-छात्राओं को ही मंजूरी दे दी है। अतिरिक्त संचालक द्वारा जारी इस पत्र में विभाग ने माना है कि बाहरी छात्र-छात्राओं को भी आरक्षित वर्ग का लाभ देते हुए प्रवेश कर दिए गए हैं, लेकिन इन्हें परीक्षा के लिए अपात्र न माना जाए। ऑनलाइन की काउंसलिंग के जरिए विभाग ने जितने भी छात्रों को प्रवेश दिए गए हैं, उन सभी को परीक्षा में शामिल किया जाए। इस पत्र ने विवि की परेशानी और बढ़ा दी है। कोई भी यदि शिकायत कर दे तो अजा-जजा कानून के तहत विश्वविद्यालयों पर गाज गिरना तय है। इस आशंका के चलते विवि अब तक अंतिम फैसला नहीं कर सके हैं।
मनमाने प्रवेश रास्ता को मिला रास्ता :
उच्च शिक्षा संचालनालय ने अपने इस पत्र में ऐसे छात्रों को भी परीक्षा में शामिल करने का आदेश दिया है, जिनकी जानकारी कालेजों ने देरी से एमपी ऑनलाइन को भेजी थी। जबकि सूत्रों की मानें तो ऑनलाइन काउंसलिंग के बाद सीटें खाली रहने पर अधिकांश कालेजों ने मनमाने ढंग से प्रवेश कर लिये थे। इनके परीक्षा फार्म भी विवि को भेज दिए गए हैं। अब यदि विवि इस आदेश पर अमल करते हैं तो सारे कालेज इन सीधे प्रवेश को भी मान्य कराने दबाव बना सकते हैं(दैनिक जागरण,भोपाल,14.12.2010)।
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