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05 दिसंबर 2010

छत्तीसगढ़ः2 करोड़ की किताबें हुईं बेकार

प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के अलावा विदेशी सहायता भी मिल रही है। डीबी स्टार इन्वेस्टीगेशन में खुलासा हुआ है कि इसका सदुपयोग न होने के कारण तमाम प्रयासों पर पानी फिर रहा है। यूरोपियन कमीशन द्वारा दी गई करोड़ों की आर्थिक मदद से राज्य में शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एस.सी.ई.आर.टी.) ने दो करोड़ की लागत से सवा लाख से अधिक किताबें खरीदी थीं। जिन शासकीय संस्थानों के छात्रों को ये दी गई हैं, उनके लिए ये किसी काम की नहीं हैं।

पड़ताल में यह भी सामने आया कि परिषद् ने इस कार्यक्रम के तहत राजधानी के शासकीय शिक्षा महाविद्यालय में अब तक छह हजार से अधिक किताबें भेज दी हैं। यहां के लाइब्रेरियन ने इसकी सूचना तत्काल एस.सी.ई.आर.टी. लाइब्रेरियन को दी तो वे बोले- अगर किताबें आउट ऑफ सिलेबस हैं तो उन्हें पहले बताना चाहिए था। वहीं इस पर कॉलेज लाइब्रेरियन कह रहे हैं कि ऐसा तब संभव होता जब खरीदी से पहले जरूरत पूछी जाती। ऐसे में यहां भेजी गईं छह हजार किताबों में से दस-बीस भी ऐसी नहीं जो बी.एड. और एम.एड. छात्रों के काम आ सकें। मजबूरन छात्रों को दस से पंद्रह साल पुरानी किताबों से पढ़ाई करनी पड़ रही है।

पुरानी से चला रहे हैं काम

लाइब्रेरी में जो नई किताबें आई हैं वे हमारे सिलेबस के अनुसार नहीं हैं। ऐसे में हम पुरानी किताबों से ही काम चला रहे हैं। इनकी संख्या कम है, जिससे एक-एक किताब के लिए कई दिनोंतक इंतजार करना पड़ता है। 
जयपाल टोप्पो, बी.एड. छात्र , शासकीय शिक्षा महाविद्यालय, शंकर नगर

पूर्व अधिकारियों ने खरीदी हैं
पूर्व के अधिकारियों ने जो किताबें खरीदी हैं वे सिलेबस के अनुसार नहीं हैं। इसके लिए आप एस.सी.ई.आर.टी. लाइब्रेरियन एस. शास्त्री से बात कर लें। विधानसभा के लिए इसकी फाइल बनाकर देना है, व्यस्त हूं ज्यादा कुछ नहीं बता सकता।
सुधीर अग्रवाल, संचालक, राज्य शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्

किसी काम की नहीं हैं
एस.सी.ई.आर.टी. ने जो किताबें भेजी हैं, वे किसी काम की नहीं हैं। इन अनुपयोगी किताबों से हम अपनी लाइब्रेरी क्यों भरें, जगह पहले ही कम है। ऐसे में छात्र पुरानी किताबों से पढ़ाई के लिए मजबूर हैं। 
एस.एस. त्रिवेदी, लाइब्रेरियन, शासकीय शिक्षा महाविद्यालय, शंकर नगर 

काम की कैसे नहीं हैं
कौन कह रहा है कि ये किताबें उपयोगी नहीं हैं। हमने तो प्रदेश में शासकीय कॉलेजों की लाइब्रेरी विकसित करने के लिए किताबें खरीदी थीं अगर छात्रों के लिए उन्हें चाहिए तो यू.जी.सी. के पैसे से खरीद 
सकते हैं-एस. शास्त्री, ग्रंथपाल, पुस्तकालय प्रकोष्ठ, राज्य शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्(दिलीप जायसवाल,दैनिक भास्कर,रायपुर,5.12.2010)

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