बीएड प्रवेश परीक्षा कराने के रूप में राज्य सरकार ने लखनऊ विवि को एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी। अतिगोपनीयता, मीडिया से दूरी और लचर प्रबंधन ने सीपीएमटी परीक्षा के बाद जमी लविवि की धाक और साख पर बट्टा लगा दिया। बवाल और बदनामी पूरे साल बीएड के साथ राहु और केतु की तरह रहे। साल बीत गया है लेकिन परेशानियां दामन छोड़ने का नाम नहीं ले रहीं। बीएड का पहला बवाल अर्हता को लेकर हुआ। प्रवेश परीक्षा का पेपर आउट हुआ और परीक्षा रद करनी पड़ी। बीएड की काउंसिलिंग के साथ एक बार फिर परेशानियां दामन में आ बैठीं। अव्यवस्था के कारण कई काउंसिलिंग केन्द्रों पर पुलिस और अभ्यर्थियों में संघर्ष हुआ। ये विवाद निपट नहीं पाए थे कि फीस कन्फर्मेशन रसीद का के मामले ने तूल पकड़ लिया। इन अभ्यर्थियों का मामला अभी भी कोर्ट में चल रहा है। अतिरिक्त फीस वसूली पर लगाम लगाने में लविवि विफल रहा। बीएड ही नहीं वर्ष 2010 कई अन्य मायनों में भी लविवि के लिए अच्छा नहीं रहा। कर्मचारी और शिक्षक संघ असंतुष्ट ही रहे। कई प्रोजेक्ट प्रक्रिया की दीवार ही नहीं पार कर पाए। आर्थिक स्थिति का अंदाजा तो इसी से लगाया जा सकता है कि 50 रुपये की चेक भी बाउंस हुई। राज्यपाल बीएल जोशी ने भी शिक्षा की स्थिति पर चिंता जताई। कई विषयों में शोध बंद हुए। एमबीए और बीएससी के कई पाठ्यक्रम बंद हुए। आरटीआई कानून की अवहेलना करने पर कुलपति प्रो.मनोज कुमार मिश्र को सूचना आयोग ने तलब किया। सुखद रहा कि देश में लविवि को 24वां स्थान दिया गया। परिसर का वातावरण सुधरा। राज्य सरकार से अनुदान बढ़ाकर 40 करोड़ किया(दैनिक जागरण,लखनऊ,30.12.2010)।
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