अपने स्कूल में पढ़ने वाले प्रत्येक छात्रों की पढ़ाई पर बीएमसी 40,641 रुपये खर्च करती है, फिर भी 12 फीसदी छात्र ही दसवीं कक्षा तक पहुंच पाते हैं जबकि, शिक्षा के नाम पर बीएमसी ने तीन साल में ही दुगुने से ज्यादा रकम की बढ़ोतरी कर दी। हैरान करने की बात यह है कि इतनी बड़ी रकम खर्च करने के बाद भी शिक्षण समिति के 22 सदस्यों (नगरसेवक) में से 11 सदस्यों ने एक सवाल तक पूछना कभी वाजिब नहीं समझा। इसका खुलासा गुरुवार को प्रजा फाउंडेशन नामक संस्था ने किया है।
शिक्षा के नाम पर खर्च करने की प्रवृत्ति में बेहद ही आश्चर्य तौर से बढ़ी। 2007-08 में शिक्षा विभाग का कुल सालाना बजट 881 करोड़ रुपये था जबकि उसके स्कूलों में 3,96,512 छात्र ही पढ़ते थे, यानी प्रत्येक छात्र की पढ़ाई पर 22,219 रुपये खर्च कर रही थी। वहीं साल 2010-11 में छात्रांे की संख्या 4,33,293 जरूर हो गई और प्रत्येक छात्र पर 40,641 रुपये खर्च किया जाने लगा। शिक्षा विभाग की कुल राशि में से करीब 65 फीसदी राशि तो शिक्षकों के वेतन पर खर्च कर दिया जाता। स्कूल इमारतों के रिपेयरिंग पर बड़ी रकम खर्च करती है।
छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए बीएमसी ने कई तरह के प्रलोभन जरूर दिए, मगर शिक्षकों को शिक्षित करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया। छात्रों को 27 तरह के आइटम फ्री देने के साथ ट्रेक्ट्रापैक दूध और एक वक्त की खिचड़ी भी दी जा रही है। हालांकि इस दौरान स्कूल छोड़ने वाले (ड्रॉपआउट) छात्रों की संख्या में निश्चित ही गिरावट आई।
रिपोर्ट का खुलासा करते हुए संस्था के निताई मेहता ने कहा कि जो आंकड़े एकत्र किए है वे बीएमसीके शिक्षा विभाग की निराशाजनक तस्वीर पेश करती है। जितना खर्च बीएमसी अपने छात्रों पर खर्च करती है उतना पैसा तो मुंबई के निजी प्राइवेट स्कूल भी शायद ही खर्च करते हो लेकिन उनके नतीजे बीएमसी से बहुत ही ज्यादा बेहतर है। निर्मला निकेतन कॉलेज ऑफ सोशल वर्क की फरीदा लाम्बे कहती है कि मुंबई के 44 प्रतिशत छात्र बीएमसी स्कूलों में पढ़ते हैं जबकि 56 प्रतिशत छात्र निजी स्कूलों में पढ़ते हैं। डॉ. रमेश पांसे कहते हैं कि बीएमसी सबसे ज्यादा शिक्षकों के वेतन पर खर्च करती है मगर शिक्षकों को ट्रेनिंग देने में परहेज करती है। शिक्षक शिक्षित होगा तो वह छात्रों को शिक्षित करेगा।
सोमैया ट्रस्ट के समीर सोमैया ने कहा की शिक्षा के प्रति लोगों की सोच में बदलवा करना होगा जिसके लिए कुछ ठोस कदम उठाने जरूरी है। छात्रों को स्कूल के प्रति आकर्षण करने के लिए एक पॉसिली बनानी चाहिए(नवभारत टाइम्स,मुंबई,10.12.2010)।
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