संसद की एक स्थाई समिति ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा न्यायपालिका आधारित प्रणाली के स्थान पर तर्कसंगत, पारदर्शी और उत्तरदाई व्यवस्था स्थापित करने एवं भ्रष्ट न्यायाधीशों से निपटने की जरूरत बताई है।
इसके साथ ही समिति ने हाईकोर्टों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु को 62 से बढ़ाकर 65 वर्ष करने के प्रस्ताव का समर्थन भी किया है। कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी संसद की स्थाई समिति ने आज संसद में पेश अपनी 44वीं रिपोर्ट में इस सिफारिश को दोहराते हुए कहा है,’न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान न्यायपालिका आधारित प्रणाली के स्थान पर तर्कसंगत, पारदर्शी और उत्तरदाई विधि लाने एवं भ्रष्ट न्यायाधीशों से निपटने आदि मुद्दों को व्यापक रूप से जल्द से जल्द निपटाए जाने की आवश्यकता है।’ जयंती नटराजन की अध्यक्षता वाली राज्यसभा की 30 सदस्यीय समिति ने आगे कहा है कि समिति महसूस करती है कि इन सब मुद्दों की निष्पक्ष जांच करना अधिक विवेकशील होगा।
संविधान (114 वां संशोधन) विधेयक 2010 की जांच पड़ताल करने के बाद अपनी रिपोर्ट पेश करने वाली समिति ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्तिआयु को 62 से बढ़ाकर 65 वर्ष किए जाने के प्रस्ताव का समर्थन किया है। इसके बाद उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु एक समान होगी।
समिति ने कहा है कि प्रस्तावित संशोधन से न्यायाधीशों की नियुक्तियों के संबंध मेंअपेक्षित राहत मिलेगी क्योंकि उच्च न्यायालय के न्यायधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु में बढ़ोतरी से कम से कम रिक्तियों की संख्या में वृद्धि को नियंत्रित रखने में मदद मिलेगी।
लेकिन समिति ने कहा है कि वह सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि को उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति में होने वाले विलंब के समाधान के रूप में नहीं देखती। इसलिए समिति ने सिफारिश की है कि मौजूदा रिक्तियों को भरने की प्रक्रिया हर हाल में यथाशीघ्र पूरी की जानी चाहिए।
समिति ने कहा है कि उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृति आयु एक समान हो जाने से उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में, उच्चतम न्यायालय में पदोन्नति पाने की प्रतिस्पर्धा कम हो जाएगी। समिति ने कुछ पक्षों द्वारा जताई गई चिंता को गंभीरता से लिया है और कहा है कि न्यायाधीशों की सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और उनके द्वारा मामलों के निस्तारण जैसे मुद्दों पर सरकार को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा उनका सेवा में बने रहना संविधान द्वारा नियंत्रित होता है लेकिन सरकार की ओर से उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया की समीक्षा किए जाने और उनके निष्पादन के परिणाम को अधिकतम करने के लिए कोई कार्य विधि तैयार करने की आवश्यकता है।
समिति ने उम्मीद जताई है कि सरकार इस दिशा में तत्काल कदम उठाएगी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वह जनता की इस चिंता की भी कदर करती है कि प्रस्तावित कार्रवाई से कुछ अपात्र व्यक्तियों को सेवा के वर्षो में बढ़ोतरी के रूप में लाभ मिल सकता है लेकिन समिति ने राय जताई है कि इसका हल एक ऐसी सुविचारित कार्यविधि तैयार करने में है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि न्यायपालिका ऐसे आरोपों से ऊपर उठे और जनता का दृष्टिकोण बदले(दैनिक ट्रिब्यून,नई दिल्ली,10.12.2010)।
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