बाजार में जाना ही होगा
कर्मचारी भविष्य निधि या ईपीएफ का पैसा शेयर बाजार में लगाने का फैसला सरकार के स्तर पर काफी पहले हो जाने के बावजूद पीएफ बोर्ड में इसे पारित नहीं कराया जा सका है। वित्त मंत्री ने श्रम मंत्रालय को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वह इस मद में जमा कुल 5 लाख करोड़ रुपयों का 15 प्रतिशत हिस्सा स्टॉक माकेर्ट में लगाने की व्यवस्था करे, ताकि सरकारी प्रतिभूतियों पर रिटर्न गिरने की हालत में भी कर्मचारियों को उनके पीएफ का भुगतान सुनिश्चित किया जा सके।
जवाब में लेबर सेक्रेटरी ने उनसे शेयर बाजार में लगाई जाने वाली रकम और एक न्यूनतम मुनाफे की गारंटी मांगी है। इसमें कोई शक नहीं कि निरंतर चढ़ते-उतरते शेयर बाजारों में अच्छे से अच्छे फंड मैनेजर भी जब-तब हाथ खड़े कर देते हैं, लेकिन समस्या यह है कि पीएफ को सुरक्षित रखने के लिहाज से अब गवर्नमेंट सिक्युरिटीज भी भरोसेमंद जगह नहीं रह गई हैं। बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज और केंदीय ट्रेड यूनियनों का एतराज अपनी जगह वाजिब है और इसे उनकी हठधमिर्ता मानना जरूरी नहीं है। लेकिन पीएफ को लेकर जारी घपलों और निवेश के मामले में खुद पीएफ बोर्ड की बेचारगी को देखते हुए देर-सबेर हमें यह मान ही लेना होगा कि इसकी सुरक्षा अब पारंपरिक साधनों के जरिए संभव नहीं रह गई है। इससे पहले कि ग्रीस और आयरलैंड की तरह भारत सरकार भी किसी दिन पीएफ की अदायगी से पल्ला झाड़ ले, इस फंड के एक छोटे हिस्से से पूंजी बाजार में कुछ साहसिक प्रयोग जरूर किए जाने चाहिए।
सट्टेबाजी के लिए नहीं देंगे
सपन मुखर्जी (महासचिव, एआईसीसीटीयू)
लंबे समय से सरकार की नजर मजदूरों-कर्मचारियों के पैसे पर लगी है। पिछले बजट में उसने सरकारी कंपनियों के विनिवेश का रास्ता साफ किया था और अगले बजट से पहले वह किसी भी कीमत पर पीएफ का पैसा शेयर बाजार में जाना सुनिश्चित कर लेना चाहती है। भारत में मजदूरों और कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा के नाम पर सिर्फ एक चीज पीएफ ही है। यूरोप में सोशल सिक्युरिटी का दायरा बहुत बड़ा है, जिसमें मेडिकल और ओल्ड एज होम जैसी सुविधाएं भी शामिल होती हैं। भारत में ऐसा कुछ भी नहीं है, और जो लोगों की खून-पसीने की कमाई पीएफ की शक्ल में पड़ी है, उसे भी शेयर बाजार के हवाले करने के लिए कहा जा रहा है। ध्यान रहे, यूटीआई घोटाले में किसी अमीर आदमी या बिजनेस हाउस का पैसा नहीं डूबा था क्योंकि उन्हें इसकी खबर पहले ही मिल गई थी। सबसे ज्यादा पैसा उसमें कर्मचारियों का डूबा था क्योंकि उन्हें बचाने में सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं थी। पीएफ के पैसे को बाजार में लगाने के लिए जो फंड मैनेजर नियुक्त किए गए हैं, उन सबकी ख्याति सरकारी धन को अपने निजी खाते में ट्रांसफर करने की है। ऐसे में सरकार कुछ भी कहे, कर्मचारी यह जोखिम उठाने के लिए कतई तैयार नहीं होंगे(नवभारत टाइम्स,दिल्ली,25.12.2010)।
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