कम से कम उम्र में बच्चा स्कूल पहुंच जाये और स्कूल पहुंचते ही अच्छी से अच्छी परफॉर्मेंस देने लगे। इसी ख्वाहिश में माता-पिता ढाई से तीन साल के बच्चे को प्रि-नर्सरी में दाखिला दिलाने के लिए आतुर रहते हैं। जिस उम्र में बच्चों को खेलकूद और अन्य शारीरिक गतिविधियों में आगे होना चाहिए उसमें वह नाजुक कंधों पर बस्ता व बोतल टांगकर स्कूल भेजे जाने लगते हैं। अभिभावकों को भले ही यह बात समझ में न आयी हो लेकिन केंद्र व राज्य सरकार बच्चों के साथ हो रही इस नाइंसाफी को अच्छी तरह समझ चुके हैं। इस नाइंसाफी को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने नर्सरी में चार वर्ष से ज्यादा उम्र के बच्चे को ही एडमिशन देने का नियम बना दिया है। इससे कम उम्र के बच्चे को स्कूल में दाखिला नहीं मिलना चाहिए, इस नियम के चलते स्कूलों में चार साल से कम उम्र के बच्चों को दाखिला नहीं दिया जा रहा है। लेकिन इस नियम के अलावा एक नियम और भी बना हुआ है। यह नियम है बच्चे को तीन साल की उम्र में स्कूल में दाखिला देना यह नियम पिछले वर्ष दिल्ली शिक्षा निदेशालय ने लागू किया था। इसी के आधार पर पिछले वर्ष तक तीन साल तक की उम्र के बच्चों को प्रि-नर्सरी में प्रवेश दिया गया। लेकिन इस वर्ष राइट टू एजुकेशन एक्ट के लागू होने से शिक्षा निदेशालय ने नर्सरी में चार साल की उम्र के बच्चे को एडमिशन देने का प्रावधान बना दिया है। ऐसे में इस विषय को लेकर अभिभावकों में असंतोष फैला हुआ है कि सही नियम क्या है? स्कूल प्रशासन भी इस बात को लेकर परेशान है कि बच्चों को आखिर किस नियम के आधार पर नर्सरी में दाखिला दिया जाये?
राइट टू एजुकेशन एक्ट कहता है कि 6 साल के बच्चे को पहली कक्षा में दाखिल मिलना चाहिए। इस हिसाब से नर्सरी में 4 साल या उससे ज्यादा उम्र के बच्चे को ही दाखिला दिया जाना चाहिए। इससे कम उम्र के बच्चे को स्कूल में प्रवेश नहीं मिल सकता। लेकिन इसी के साथ पिछले वर्ष के नियम को अभी तक खत्म नहीं किया गया है। ऐसे में स्कूल प्रशासन असमंजस में है। यदि स्कूल प्रशासन यह सोचकर परेशान है कि यदि नर्सरी में 3 साल की उम्र वाले बच्चे को दाखिला दे दिया और राइट टू एजुकेशन एक्ट लागू हो गया तो इस हिसाब से स्कूलों पर जुर्माने व कार्रवाई की गाज गिर सकती है। ऐसे में स्कूल प्रशासन नर्सरी में बच्चों के प्रवेश पर कोई फैसला नहीं ले पा रहे हैं। स्कूलों के इस रवैये से अभिभावकों में असंतोष बढ़ रहा है। उन्हें यह लग रहा है कि उनके बच्चों का एक साल कहीं बर्बाद न हो जाये। शिक्षा निदेशालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस असमंजस को दूर करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय की सलाह मांगी है। मंत्रालय से यह कहा गया है कि उम्र और नर्सरी एडमिशन के नियम को किस आधार पर निर्धारित किया जाये, इस पर जल्द ही कोई फैसला लिया जाये। स्कूलों में दाखिले के लिए आ रहे अभिभावक स्कूल प्रशासन से लगातार यह सवाल कर रहे हैं कि उनके बच्चे को एडमिशन कब मिलेगा?
इस पूरे वाकया को सुनने व समझने के बाद कहां किसकी गलती है, इस पर थोड़ी-बहुत चर्चा होनी जरूरी है? सबसे पहले बात करते हैं राइट टू एजुकेशन एक्ट की। इस एक्ट के तहत नर्सरी में बच्चे के दाखिले को लेकर उम्र में जो फेरबदल किया गया है उसे समूचे देश के स्कूलों में समय से क्यों नहीं पहुंचाया गया? यदि राइट टू एजुकेशन एक्ट सिर्फ एक मशविरा है तो शिक्षा निदेशालय स्कूल प्रशासन को पुराने नियम के आधार पर नर्सरी में प्रवेश के आदेश क्यों नहीं दे रहा है? ये तमाम गड़बडिय़ां सिर्फ एक वजह के चलते हो रही हैं। सरकारी विभागों में आपसी संवाद की कमी के कारण। नर्सरी में दाखिले को लेकर शिक्षा निदेशालय को अभी भी मंत्रालय की ओर से कोई ओदश नहीं मिले हैं जिससे स्कूलों को दिशा-निर्देश दे पाने में परेशानी हो रही है।
यह तो हो गयी सरकारी महकमे की लापरवाही की बात। अब स्कूल प्रशासन की निर्भरता पर भी गौर फरमायें। नर्सरी में किस उम्र के बच्चे को दाखिला दिया जाये, इसे लेकर स्कूल प्रशासन आखिर शिक्षा निदेशालय पर इतना निर्भर क्यों हो रहा है? नियम जो भी हों स्कूलों को एक तय मानक के आधार पर नर्सरी में बच्चों को दाखिला देना शुरू कर देना चाहिए। नर्सरी में दाखिले को लेकर नियम जो भी हों, 4 साल की उम्र में बच्चे को नर्सरी में दाखिले से ज्यादा कोई और परिवर्तन नहीं हो सकता। ऐसे में स्कूल प्रशासन को 4 साल की उम्र में बच्चों को नर्सरी में दाखिला देना शुरू कर देना चाहिए। यदि राइट टू एजुकेशन के तहत बनाया गया नियम लागू होता है तो भी स्कूलों का कुछ नहीं बिगड़ेगा और यदि पुराने नियम के आधार पर ही दाखिले होंगे तो भी स्कूल प्रशासन पर कोई अंगुली नहीं उठेगी।
स्कूल प्रशासन से जब इस विषय पर बात की गयी तो उन्होंने सीधे तौर पर एक ही जवाब दिया ‘हम भी कुछ ऐसा ही करने की सोच रहे थे। लेकिन अभिभावक इस बात के लिए कतई तैयार नहीं हो रहे हैं कि उनके बच्चे का एक साल बर्बाद हो। जब बच्चे को 3 साल की उम्र में नर्सरी में प्रवेश मिल सकता है तो एक साल और इंतजार करने की क्या जरूरत है। एक साल की देरी होने से उनके बच्चे का भविष्य प्रभावित हो सकता है। ऐसे में अभिभावक स्कूल प्रशासन पर इस बात का दबाव बना रहे हैं कि वह शिक्षा निदेशालय से जल्द से जल्द फैसला लेने को कहे।’ 3 साल का बच्चा अगर एक साल और बचपन को जी लेगा तो उसका भविष्य बिगडऩे की आशंका कितने प्रतिशत तक हो सकती है? 3 साल की उम्र में अगर बच्चा स्कूल नहीं जा पाया तो इसमें इतना हाय-तौबा मचाने की क्या बात है? स्कूल प्रशासन पर अभिभावक यदि यह दबाव बना रहे हैं कि उनके बच्चे को 3 साल की उम्र में ही नर्सरी में प्रवेश दिया जाये तो यह बच्चे के साथ नाइंसाफी है। बच्चा जितना ज्यादा समय अपने अभिभावकों के साथ और घर की पाठशाला में बिताता है वह उतना ही परिपक्व हो जाता है। स्कूल में प्रवेश लेने के बाद बच्चे स्कूल में सिखाये जा रहे तौर-तरीकों को ज्यादा ग्रहण करते हैं। फिर घर की पाठशाला उनके लिए बेकार हो जाती है। ऐसे में यदि बच्चों को एक नियत उम्र तक घर पर ही शिक्षा दी जाये तो इससे बच्चे का भविष्य बिगड़ता नहीं बल्कि संवरता है(नीलम अरोड़ा,दैनिक ट्रिब्यून,22.12.2010)।
विचारणीय पोस्ट।
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