उत्तर प्रदेश के सरकारी दफ्तरों में छुट्टियों की संख्या में दिन प्रतिदिन इजाफा हो रहा है। स्थिति यह है कि साल के 365 दिन में वर्तमान में 183 दिन छुट्टी रहती है। इससे सरकारी कामकाज पर खासा असर पड़ रहा है। राज्य में घोषित छुट्टियों में 52 रविवार + 52 शनिवार + 32 सार्वजनिक अवकाश + 31 अर्जित अवकाश + 14 आकस्मिक अवकाश + 02 निर्बधित अवकाश। इनका योग हुआ 183। यूपी में सरकारी छुट्टियों में देखते-देखते यह इजाफा हुआ है। वजह यह कि यहां छुट्टियों की बिसात पर राजनीतिक चालें चली जाने लगी हैं। राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, वह जातीय सम्मेलनों के आयोजन में खासी दिलचस्पी रखते थे। इसके पीछे उनकी सोच अलग-अलग जातियों के भीतर अपना वोट बैंक तैयार करने की थी। यही वजह रही कि उन्होंने चेटी चंद, महाराजा अग्रसेन और चित्रगुप्त की जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया। मुलायम सिंह जब मुख्यमंत्री थे, उनकी पहली फिक्र अपने मुस्लिम वोट सहेजने की और दूसरी सोशल इंजिनियरिंग के नाम पर बसपा के पाले में जा रहे ब्राह्मणों को रोकने की थी। मुलायम सिंह ने अलविदा तथा हजरत अली के जन्म दिन पर सार्वजनिक अवकाश तो किया ही है, ब्राह्मणों को खुश करने के नजरिए से परशुराम जयंती पर भी सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया। बसपा सरकार में कांशीराम जयंती और उनके निर्वाण दिवस पर दो नई सार्वजनिक छुट्टियां घोषित हुई। छुट्टियों का यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। पासी समाज ऊदा देवी जयंती पर सार्वजनिक अवकाश की मांग रहा है। सपा व भाजपा दोनों तरफ से यह आश्र्वासन दिया जा चुका है, उनकी सरकार बनते ही यह छुट्टी घोषित की जाएगी। सविता समाज की तरफ से भी सार्वजनिक अवकाश की मांग हो रही है। कामकाज पर असर : उत्तर प्रदेश में सचिवालय और सभी विभागाध्यक्ष कार्यालयों में पांच दिवसीय सप्ताह लागू है। इसके इतर सरकारी दफ्तरों में भी छुट्टियों की संख्या कुछ कम नहीं है। यहां भले ही सभी शनिवार पर छुट्टी न होती हों, लेकिन 52 रविवार के साथ-साथ 12 द्वितीय शनिवार + 32 सार्वजनिक अवकाश + 31 अर्जित अवकाश + 14 आकस्मिक अवकाश + 02 निर्बधित अवकाश+ 04 कार्यकारी आदेशों के तहत घोषित अवकाश (गुरू गोविंद जयंती, विश्र्वकर्मा पूजा, बाल्मीकि जयंती व तेग बहादुर शहीद दिवस) + तीन स्थानीय अवकाश (जिलाधिकारी स्थानीय महत्व के त्यौहार, मेला या जयंती पर घोषित करता है) यानी कि 150 छुट्टियां तो मिलती ही हैं। इतनी अधिक छुट्टियों का काम काज पर असर पड़ना स्वाभाविक है(नदीम,दैनिक जागरण,लखनऊ,25.12.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।