चुनौतियां सामने हैं, लिहाजा सरकार ने भी साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स की पढ़ाई के साथ ही बच्चों को हुनरमंद बनाने के लिए स्कूली से लेकर उच्च स्तर तक व्यावसायिक शिक्षा का नया ढांचा खड़ा करने की तैयारी शुरू कर दी है। स्कूली शिक्षा में तो राष्ट्रीय स्तर पर उसका बोर्ड ही अलग होगा। छात्रों को आजादी होगी चाहे तो सामान्य शैक्षिक पाठ्यक्रम की पढ़ाई करें या फिर उसके साथ ही व्यावसायिक शिक्षा भी हासिल कर सकेंगे। सरकार इस नये एजेंडे को लेकर हरकत में है। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा की पाठ्यचर्या (कैरीकुलम) का फ्रेमवर्क तैयार करने के लिए आटोमोबाइल क्षेत्र की जानी-मानी कंपनी अशोक लीलैंड के प्रबंध निदेशक डॉ. आर. शेषशाई की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित कर दी है। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के कार्यवाहक चेयरमैन एसएस मंथा, मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अपर सचिव अशोक ठाकुर, एनके सिन्हा व संयुक्त सचिव एससी खुंटिया उसके सदस्य होंगे। कमेटी तीन महीने में सरकार को अपनी रिपोर्ट देगी। इस बीच, इस नई पहल पर राज्यों की भी भूमिका व पाठ्यचर्या पर विचार-विमर्श के लिए सरकार ने आगामी 16 दिसंबर को राज्यों के शिक्षा मंत्रियों की भी बैठक बुलाई है। कपिल सिब्बल ने बुधवार को यहां पत्रकारों से वार्ता के दौरान कहा कि व्यावसायिक शिक्षा के इस नये विकल्प में स्कूली पढ़ाई, ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट के लिए तीन अलग-अलग स्तर होंगे। छात्रों को सामान्य स्कूली पढ़ाई के साथ व्यावसायिक शिक्षा को साथ-साथ या फिर अलग-अलग पढ़ने की आजादी होगी। पाठ्यक्रम के लिहाज से उन्हें उसके लिए सर्टिफिकेट, डिप्लोमा औरडिग्री दी जायेगी। व्यावसायिक शिक्षा की स्कूली पढ़ाई के बाद ग्रेजुएट स्तर पर दाखिले के लिए उसकी वही मान्यता होगी, जो अभी दूसरी पढ़ाई की है। सिब्बल ने कहा कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने अलग व्यावसायिक शिक्षा बोर्ड के गठन के लिए काम शुरू कर दिया है, जबकि स्कूली व्यावसायिक शिक्षा में सौ से अधिक पाठ्यक्रम तैयार करने की योजना है। उन्होंने कहा कि फिलहाल इस नये एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए आटामोबाइल क्षेत्र के प्रतिनिधियों से वार्ता हुई है। उन्होंने इसमें खास दिलचस्पी दिखाई है। जबकि इसके बाद ही वह सूचना व संचार प्रौद्योगिकी, मनोरंजन उद्योग, निर्माण क्षेत्र, होटल, वित्तीय एवं बीमा क्षेत्र के प्रतिनिधियों के साथ बैठक करने जा रहे हैं। तर्क यह है कि देश की अर्थ व्यवस्था व विकास का 56 प्रतिशत सेवा क्षेत्र से ही आता है। देश में असंगठित क्षेत्र के कुल कामगारों का अभी सिर्फ पांच हिस्सा ऐसा है, जिसके पास उस क्षेत्र में काम करने का सर्टिफिकेट है(दैनिक जागरण,दिल्ली,9.12.2010)।
नई दुनिया की रिपोर्टः
उद्योग जगत की बढ़ती जरूरतों को किस तरह से शिक्षा का नेटवर्क पूरा कर सकता है, किस तरह से बेरोजगारी से निपटने के लिए वोकेशनल शिक्षा को सीबीएसई के नेटवर्क में डाला जा सकता है, इसके लिए केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने ठोस पहल की है। वोकेशनल शिक्षा का पाठ्यक्रम बनाने के लिए एक कोर समूह का गठन किया है जो तीन महीने में अपनी रिपोर्ट देगी।
इस रिपोर्ट के बाद सीबीएसई के स्कूलों में नौंवी कक्षा से वोकेशनल शिक्षा के कोर्स को शुरू करने की तैयारी है। इस बारे में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने आज बताया कि वोकेशनल कोर्स को लेकर उद्योग जगत की प्रतिक्रिया बहुत सकारात्मक है क्योंकि उन्हें पेशेवर कारीगर नहीं मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्कूली शिक्षा में व्यावसायिक पाठ्यक्रम के विकास की जरूरत है ताकि छात्रों को उनकी रुचि के मुताबिक व्यावहारिक शिक्षा भी दी जा सके और साथ ही उद्योग जगत की जरूरतों के अनुसार श्रमिक और कारीगर तैयार हों। वोकेशनल पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए कोर कमेटी का गठन मंत्रालय ने अशोक लेलैंड लिमिटेड के प्रबंध निदेशक डॉ. आर सेशासई के नेतृत्व में किया है। ये समिति उद्योग जगत की अपेक्षाओं के अनुरूप पाठ्यक्रम तैयार करेगी। इसके बाद मंत्रालय इसके अमल के पहलू पर विचार करेगा। इस मुद्दे पर विचार करने के लिए सिब्बल राज्यों के शिक्षा मंत्रियों की बैठक भी बुलाने जा रहे हैं। इस पाठ्यक्रम की जरूरत के बारे में सिब्बल ने कहा कि इस समय मैन्युफैक्चरिंग उद्योग में जबर्दस्त उछाल है लेकिन वहां काम करने के लिए दक्ष कारीगरों की बेहद कमी है। इसी तरह से हमारे पास इलेक्ट्रिकल में काम करने वाले लोग भी नहीं है। हालत यह है कि एयरलाइंस के विस्तार के चलते हमारे यहां ड्राइवरों का अभाव हो गया है और विदेशी ड्राइवरों को रखना पड़ रहा है। ट्रक ड्राइवरों की कमी है। सिब्बल ने कहा कि जिस तेजी से कंस्ट्रक्शन उद्योग का विकास हो रहा है, देश को बड़े पैमाने पर दक्ष श्रमिक-कारीगर चाहिए। इसके लिए अलग से ट्रेनिंग की जरूरत है। इसी कमी को वोकेशनल कोर्स के जरिए पूरा किया जा सकेगा। इसके साथ ही सिब्बल ने अपने महत्वाकांक्षी विधेयक का भी जिक्र किया- विदेशी शिक्षा प्रदाता विधेयक। सिब्बल का मानना है कि अगर ये विधेयक पारित हो जाता है तो बहुत से विदेशी संस्थान वोकेशनल शिक्षा देने के लिए भारत अपने संस्थान खोलेंगे।
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