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04 दिसंबर 2010

यूपी में संस्कृत विद्यालयों का अल्पसंख्यक दर्जा समाप्त

विश्व की प्राचीनतम भाषा संस्कृत का अल्पसंख्यक दर्जा अब उत्तर प्रदेश में समाप्त हो गया है। यह विद्यालय अब बंगला, उर्दू या अन्य अल्पसंख्यक भाषाओं को मिलने वाली सारी सुविधाओं से वंचित रहेंगे। इतना ही नहीं, संस्कृत विद्यालयों में अब सिर्फ पंडित जी ही नहीं पढ़ाएंगे वरन इनमें भी आरक्षण के प्रावधान लागू होंगे। इन विद्यालयों में अब समाज के अन्य वर्गो का भी आनुपातिक प्रतिनिधित्व होगा। प्रदेश में इस समय संस्कृत विद्यालयों में अधिकांश शिक्षक व कर्मचारी सवर्ण ही तैनात हैं। अनुदानित विद्यालयों में भी यही स्थिति रही है। माध्यमिक शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की माने तो प्रदेश में वर्ष 1994 से आरक्षण प्रावधान लागू हुए हैं। इसके बाद राज्य से सहायता प्राप्त सभी संस्थानों में आनुपातिक आरक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इससे सिर्फ अल्पसंख्यक संस्थानों को ही मुक्त रखा गया था। वर्ष 1994 से अब तक संस्कृत विद्यालयों को कई चक्रों में अनुदान पर तो लिया गया पर इनमें नए शिक्षकों व कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हुई। विभाग में अब तक संस्कृत विद्यालयों में स्टाफ की तैनाती के लिए कोई नियमावली नहीं थी। इस वजह से नियुक्तियां रुकी हुई थीं। यह विद्यालय पूर्व से कार्यरत कर्मचारियों व शिक्षकोंके सहारे ही चल रहे हैं। इस बीच प्रदेश सरकार के माध्यमिक शिक्षा विभाग ने जनवरी 2010 में संस्कृत विद्यालयों के शिक्षकों, कर्मचारियों व प्राचार्यो की नियुक्ति के लिए नई नियमावली तैयार कर लागू कर दी है। इस नियमावली में संस्कृत विद्यालयों का अल्पसंख्यक दर्जा समाप्त कर दिया गया है। नियमावली के नियम नौ (क) में शिक्षकों के चयन के पूर्व आरक्षित व अनारक्षित पदों का अलग अलग उल्लेख करने का निर्देश दिया गया है। नए निर्देशों के तहत अब संस्कृत विद्यालयों में भी शिक्षकों व कर्मचारियों की तैनाती में सभी वर्गो को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। नई नियमावली के तहत संस्कृत विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया सितंबर में प्रारंभ हो चुकी है। इसमें शीघ्र विज्ञापन जारी होने की संभावना जताई जा रही है(एल.एन.त्रिपाठी,दैनिक जागरण,वाराणसी,4.12.2010)।

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