नेतरहाट से स्कूलिंग, आइआइटी दिल्ली से बीटेक व एमबीए करने वाले शशांक कुमार और आइआइटी , खड़गपुर से बीटेक मनीष कुमार नये जमाने के बिहारी नौजवान हैं। जाहिर है कि इनके पास भी कारपोरेट कंपनियों के आकर्षक पे-पैकेज वाले कई प्रस्ताव आये। एक सुरक्षित रास्ते को अपना कर ये दोनों भी कहीं नौकरी कर रहे होते, लेकिन तब ये अपने प्रदेश के लिए नये दौर की किसानी का आइकन नहीं गढ़ रहे होते। शशांक और मनीष किसान के बेटे हैं। नौकरी की बजाए उन्हें खेत की सोंधी माटी रास आई। आकर्षक ऑफरों को ठुकराने के बाद वे अपनी मेधा का इस्तेमाल अपने खेतों से सोना (समृद्धि) पैदा करने में कर रहे हैं। इसे कृषि एवं किसानों के लिए शुभ संकेत माना जा सकता है। युवा टेक्नोक्रैट्स का खेती को समर्पित होना मिसाल बन रहा है। इसका असर भी दिखायी देने लगा है। किसान छोटे-छोटे समूहों में संगठित होने लगे हैं। कृषि की उच्च तकनीक, उन्नत बीज, बेहतर खाद व कीटनाशकों का सही इस्तेमाल रंग लाने लगा है। बीज से लेकर बाजार तक की व्यवस्था किसान अब इनके निर्देशन में स्वयं करने लगे हैं। इससे पैदावार में दोगुना वृद्धि हुई है तथा कृषि लागत में कमी आयी है। सिर्फ आठ माह में तकनीक संपन्न दो युवाओं ने यह सब कर दिखाया है। दोनों ने फार्म एण्ड फार्मर नामक संस्था बनाई है। इसके अधीन 10 से 15 किसानों के छोटे-छोटे समूह बनाये जा रहे हैं। संस्था एक तरफ देशभर में फैले कृषि तकनीकी संस्थानों से नेटवर्किंग कर रही है, वहीं दूसरी ओर सूबे के किसानों को संगठित कर सामूहिक खेती का पाठ पढ़ा रही है। संस्था की ओर से पहला समूह मई 2010 में वैशाली जिले के चक दरिया गांव में बनाया गया था। वैशाली से किसानों को संगठित करने का शुरू हुआ सिलसिला अब भोजपुर, पूर्णिया, सारण जिले तक पहुंच चुका है। प्रत्येक समूह में 10 से 15 किसान शामिल किये जा रहे हैं। इन किसानों का चयन काफी जांच-परख के बाद ही किया जाता है। संस्था समूह के किसानों के लिए बीज से लेकर बाजार तक की व्यवस्था कर रही है। बीज से लेकर बाजार तक का प्रबंध : दोनों आइआइटीयनों ने अपनी-अपनी जिम्मेदारी तय कर ली है। मनीष कुमार जहां किसानों को संगठित करने और खेती के गुर सिखाने में तल्लीन हैं, वहीं शशांक उत्तम कोटि के बीज व बेहतर बाजार की तलाश में जुटे हैं। संस्था सबसे पहले किसानों का समूह बनाकर अपने निर्देशन में कम-से-कम पांच एकड़ में सामूहिक खेती कराती है। उसके लाभ को देखकर संस्था की ओर किसान बरबस खिंचे चले आ रहे हैं। खेती के दौरान फसलों के चयन में भौगोलिक वातावरण एवं मिट्टी की संरचना पर जोर दिया जाता है। पैदावार को बेहतर बाजार मिले इसके लिए भी प्रयास किए जा रहे है(नीरज कुमार,दैनिक जागरण,पटना,27.12.2010)।
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