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04 दिसंबर 2010

पंजाब पुलिस के कांस्टेबल झेल रहे हैं अंग्रेजों के बनाए नियमों की मार

अंग्रेजों से निजात मिले बेशक 63 वर्ष हो गए, लेकिन पंजाब पुलिस का ही एक बड़ा वर्ग ऐसा नहीं मानता, क्योंकि सिपाही रैंक के फील्ड पुलिस कर्मचारी आज भी गुलामी के दौर के एक नियम से पीडि़त हैं। उनको अन्य कर्मचारियों की तरह पूरा साल मकान किराया भत्ता नहीं मिलता। उनके जैसी ड्यूटी देने वाले ऊपरी रैंक के पुलिस कर्मचारी व अधिकारी 100 फीसदी मकान किराया भत्ता ले रहे हैं। जानकारी के अनुसार, पहले इस कानून की मार में हेड कांस्टेबल रैंक के 25 फीसदी कर्मचारी भी शामिल थे। वर्ष 1979 के बाद अकेले कांस्टेबल ही इसका शिकार बना दिए गए। पुलिस विभाग केअनुसार, पंजाब पुलिस कानून-1934 की नियमावली 321 के तहत ऐसा हो रहा है। यह कानून वास्तव में पुलिस कानून-1861 का अनुसरण करता है। सूत्रों के अनुसार, पंजाब पुलिस के करीब 40 हजार सिपाही इससे पीडि़त हैं। ये सभी अपेक्षाकृत सख्त ड्यूटी करते हैं। यह दूसरी बात है कि विजिलेंस ब्यूरो, एक्साइज विभाग, कार्यालयों व मुख्यालय (दफ्तरी अमला) में तैनात इसी रैंक के पुलिस कर्मचारियों को पूरा साल यानी 100 फीसदी मकान किराया भत्ता मिल रहा है। मगर सिपाही रैंक के फील्ड पुलिस कर्मचारियों को रोटेशन के नाम पर तीन-चार महीने के मकान किराया भत्ते से वंचित कर दिया जाता है। हालांकि, कुछ सिपाही किसी तरह से अपना नाम रोटेशन से बाहर करवा लेने में कामयाब रहते हैं यानी वे 100 फीसदी भत्ता लेने में सफल रहते हैं। मकान किराया भत्ते में पक्षपात के इस मामले को अदालत में लेकर जाने वाले तत्कालीन सिपाही एवं वर्तमान हेड कांस्टेबल मनोहर लाल ने दैनिक जागरण को बताया कि उन्होंने दलील दी थी कि अंग्रेजों का मानना था कि जो पुलिस कांस्टेबल रिजर्व ड्यूटी के दौरान जब घर ही नहीं जा सकते, तो उनको मकान किराया भत्ता देने की क्या आवश्यकता है। पंजाब एवं हरियाणाहाईकोर्ट से इंसाफ पाने वाले मनोहर लाल ने निराशा के आलम में बताया कि करीब सात महीने पहले अदालत का फैसला पंजाब सरकार एवं पुलिस विभाग ने आज तक नहीं लागू किया, जो अदालत के आदेश का उल्लंघन है। मनोहर लाल के अनुसार, वह चाहते हैं पंजाब सरकार अदालत के आदेश को तुरंत लागू कर अंग्रेजों के इस काले कानून से निजात दिलाए। यदि ऐसा नहीं होता तो फिर अदालत की शरण में जाने के अतिरिक्त उनके पास दूसरा विकल्प नहीं रह जाता। उधर, इस मामले में जब पंजाब पुलिस के कार्मिक विभाग के उच्च अधिकारियों से बातचीत की गई तो उनका कहना था कि यह मामला सरकार को भेजा हुआ है। उनको इससे ज्यादा कुछ मालूम नहीं है(दैनिक जागरण,पटियाला,4.12.2010)।

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