शोध ऐसा होना चाहिए जिसका लाभ आम लोगों को मिल सके। ज्यादा शोध होने की बजाय उसकी गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाना चाहिए। शोध के लिए धन की कमीं नहीं होना चाहिए। यह बातें गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी में नेशनल कांफ्रेस के समापन मौके पर संत गाडगे बाबा यूनिवर्सिटी की पूर्व कुलपति डा. कमल सिंह ने कही।
उन्होंने कहा कि शोध का फंडामेंटल स्पष्ट होना चाहिए। हमें चीन समेत अन्य विकसित देशों में शोध के क्षेत्र में हो रहे काम से सीख लेनी चाहिए। उन्होंने शोध कार्य के लिए युवाओं को आगे आने का आह्वान किया। धन की कमीं को पूरा करने के लिए उन्होनें कहा कि इसके लिए यूनिवर्सिटीज व अन्य संस्थाओं को आगे आना चाहिए। गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्योर एंड एप्लाइड फिजिक्स डिपार्टमेंट में फेरोइलेक्ट्रिक एंड डाईइलेक्ट्रिक विषय पर 16 वे नेशनल कांफ्रेस का समापन हुआ। समापन कार्यक्रम आईटी बिल्डिंग के ई-क्लास रूम में हुआ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता उपकुलपति डा. पीसी उपाध्याय ने की। कार्यक्रम में कार्यपरिषद के सदस्य जावेद उस्मानी व प्रो. वीके मिश्र उपस्थित थे। समापन कार्यक्रम में आईआईटी मद्रास के डा. वीआरके मूर्ति, डा. पीपी मूर्ति ने भी अपने विचार रखे। स्वागत भाषण , सेमीनार रिपोर्ट एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रो. पीके बाजपेयी ने किया। सेमीनार में कुल 106 पोस्टर प्रेजेंट किए गए। । इसमें पहले तीन को पुरस्कृत किया गया। इसमें प्रसून गांगुली व एके झा दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी, दिल्ली, टारेले ए. एन जीगाजेने एसएसआर. कोकारे एस रेटल, शोलापुर यूनिवर्सिटी व एमपीके साहू-धीरेन प्रधान व आरएनपी चौधरी आईआईटी खड़गपुर शामिल हैं।
ओरिएंटेशन कार्यक्रम में बांटे गए प्रमाण पत्र
यूजीसी एकेडमिक स्टॉफ कालेज द्वारा आयोजित ओरियेंटेशन कार्यक्रम का समापन शनिवार को मैनेजमेंट स्टडिज बिल्डिंग में किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा. पीसी उपाध्याय थे। इस मौके पर उन्होंने कहा कि शिक्षा के गिरते स्तर के लिए शिक्षक ही जिम्मेदार हैं। इसलिए आज शिक्षकों से अपेक्षाएं बढ़ गई हैं। शिक्षक ही विद्यार्थियों के मार्गदर्शक हैं। विद्यार्थी शिक्षक के कार्य-व्यवहार की नकल करते हैं इसलिए शिक्षकों को अच्छे आचरण का परिचय देना चाहिए।
शिक्षकों को चाहिए कि सभी विषयों का सामान्य जानकारी होने के साथ वह एक विषय में मास्टर भी हो। इस मौके पर डा. वीके मिश्र ने कहा कि ज्ञान का लगातार विस्तार हो रहा है। उन्होंने शिक्षकों को पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन करते रहने पर बल दिया। इस मौके पर मुख्य अतिथि ने प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किया।
रिसर्च स्कॉलर्स ने कहा- सिर्फ परीक्षा नहीं, विषय का विश्लेषण भी जरूरी
तीन दिनी नेशनल कांफ्रेस में आयोजन समापन पर विशेषज्ञों ने विचारों के आदान प्रदान को महत्वपूर्ण मानते हुए ऐसे आयोजन के आवश्यकता पर जोर दिया। इन्होंने विषय की जानकारी और फेरो व डाईइलेक्ट्रिक की संभावनाएं बताई। गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के ई-क्लास रूम में शनिवार को कांफ्रेस का समापन हुआ। अंतिम दिन विशेषज्ञों ने सीनियर और रिसर्च करने वाले युवा वैज्ञानिकों के बीच विषय पर चर्चा को जोर दिया। परिवर्ती ऊर्जा साइक्लट्रोन केंद्र कोलकाता के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर एसके बंधोपाध्याय ने कहा कि सिर्फ किसी विषय की परखने के लिए परीक्षा ही पर्याप्त नहीं होती उसका विश्लेषण भी होना चाहिए।
श्री बंधोपाध्याय ने आगे बताया कि फेरो इलेक्ट्रिक और डाईइलिक्ट्रक की संभावनाओं पर जानकारी हुए परिवर्ती ऊर्जा साइक्लट्रोन कंेद्र कोलकाता के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर एसके बंधोपाध्याय ने कहा कि अल्फा, प्रोटॉन, आक्सीजन, न्यूआन, जीनान आदि कणों को चुंबकीय क्षेत्र में त्वरित किया जाता है। कणों का यह त्वरण लंबवत होता है। यह गतिशील होता है, इससे परमाणु के केंद्र में जो घट रहा है उसका आंकलन किया जा सकता है। कण के ज्यादा गतिशील को ही साइक्लट्रोन कहा जाता है। यह साइक्लट्रोन तीन प्रकार से होता है। सामान्य ताप पर काम करने पर रूम टेम्प्रेचर तथा अतिपरिवाही गतिशील कण को सुपर कंडक्टी साइक्लट्रोन कहा जाता है।
बहुत कम तापमान में काम करने वाले साइक्लट्रोन के लिए तरल हीलियम की जरूरत होती है। मटेरियल साइंस से जुड़े होने की बात पर उन्होंने बताया कि साइक्लट्रोन के ज्यादा गतिशील कणों में जाने पर उसमें डिफेक्ट जेनरेट करेगा जिसके परिवर्तन का विश्वलेषण किया जा सकता है। इसमें कण की शक्ति आसानी से वस्तु के अंदर जा सकती है। इस प्रकार की खोजों से सृष्टि के उत्पत्ति का पता लगाया जा सकता है।
प्रोफेसर एके हिमांशु ने कहा कि देश वैज्ञानिकों का दायित्व है कि वे ऐसा सेंसर बनाएं जो नए खोज में सहायक हो। आईआईटी खड़गपुर के आरएनपी चौधरी ने कहा कि कुछ फेरोमटेरियल में मैंग्नेटिक गुण होते हैं, यदि सामान्य और विशेष गुण वाले फेरों को मिलाकर ऐसा मटैरियल बनाया जाए जिसमें वही दोनों गुण हों। ऐसे दुर्लभ पदार्थ शोध के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। काफ्रेंस में इस विषय पर काफी देर तक चर्चा हुई।
कांफ्रेंस में सुझाव दिया गया कि इस तरह की रिसर्च पर काम करने के लिए देश के बड़े संस्थानों को छोटे संस्थानों से मिलकर काम करना चाहिए। सेंट्रल ग्लास एंड सिरामिक रिसर्च इंस्टीटच्यूट कोलकाता के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. अमरनाथ सेन ने कहा कि ऐसे कांफ्रेस का आयोजन समय-समय पर जरूरी है। इनमें हर किसी के लिए सीखने को कुछ न कुछ होता है, चाहे वह सीनियर हो या जूनियर, सिर्फ ललक होनी चाहिए(दैनिक भास्कर,बिलासपुर,5.12.2010)।
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