यूपी के बरेली जिले में डॉक्टर, इंजीनियर व विभिन्न संस्थानों में प्रबंधक बनने की शिक्षा लेने आये तमाम विद्यार्थियों ने किताबों के पाठ याद करने के बजाए नंबर ज्ञान कंठस्थ कर लिया। परीक्षा में फेल हो गये, लेकिन सुधार का दूसरा प्रयास (बैक पेपर) नहीं किया। कापी में भले न लिखकर आया हो, मगर स्क्रूटनिंग में गोपनीय विभाग के कारिंदों और लक्ष्मी की कृपा से उत्तीर्ण अंक (पासिंग मार्क्स) मिल गए। बरेली विश्वविद्यालय के पिछले सत्र में एमबीबीएस, बीबीए, बीसीए, बिजनेस लॉ की परीक्षा देने वाले करीब आधा दर्जन या तो फेल हो गए या फिर उन्हें परीक्षा में कम अंक मिले। यूनिवर्सिटी के कर्मियों के इशारे पर छात्रों ने स्क्रूटनिंग के लिए आवेदन किया। कुलपति के अनुमोदन के बाद स्क्रूटनी कमेटी ने कापियों की दोबारा जांच शुरू की। हैरत है, पुनर्मूल्यांकन में इनमें से कोई छात्र फेल नहीं हुआ। एमबीबीएस के एक छात्र को पास होने के लिए एक नंबर चाहिए था, मिल गया। कालेज में दोबारा मोटी फीस देने के बजाय उसने गोपनीय विभाग में दान दक्षिणा दे दी। छात्र नेता सत्येंद्र सिंह सत्तू की शिकायत पर जांच कमेटी बनाई, लेकिन अभी तक रिपोर्ट तैयार नहीं हो सकी। कैसे होता है खेल : छात्रों की स्क्रूटनी के लिए कुछ विश्वसनीय शिक्षकों को बैठाया जाता है। किसी भी छात्र की कापी में अगर 7 या 8 नंबर लिखे हों। उस नंबर से पहले उसी रंग के पैन से एक नंबर की लकीर खींची जाती है। जिससे छात्र केनंबर 7 से 17 और 8 से 18 हो जाते हैं। इसके अलावा 4 के आगे 6 लिखकर 46 और 7 के आगे 8 लगाकर 78 हो जाते हैं। इसके बाद यह कॉपी स्क्रूटनी कमेटी के आगे जाती है। कमेटी जब कॉपी का टोटल करती है। वास्तविकता में उसे नंबर कम नजर आते हैं और वह दोबारा टोटल कर मार्कशीट जारी करने के आदेश कर देती हैं। सूत्रों के अनुसार इस बार अधिकांश छात्रों के नंबर इसी तरह बढ़ाए गए हैं। नंबरों के इस खेल में यह बात तो बिलकुल साफ हो चुकी है कि कहीं न कहीं बड़ी गड़बड़ी की गई है(सुचित्रा सिंह,दैनिक जागरण,बरेली,5.12.2010)।
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