नेशनल फेडरेशन आफ आकाशवाणी एंड दूरदर्शन इंप्लाइज एसोसिएशन के केंद्रीय अध्यक्ष अनिल कुमार एस ने केंद्रीय सरकार से प्रसार भारती अधिनियम को निरस्त करने की मांग की है। मंगलवार को प्रेस से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि प्रसार भारती का गठन निजीकरण के लिए किया गया है। धीरे-धीरे स्वायत्तता के नाम आकाशवाणी और दूरदर्शन को निजी हाथों में सौंपने की यह साजिश है। पूरे देश में 1800 केंद्र हैं और सभी केंद्रों के पास काफी संपत्ति है और सभी प्रमुख शहरों में प्राइम लोकेशन पर हैं। इनकी कीमत का अनुमान लगाया जा सकता है। इन संपत्तियों को प्रसार भारती औने-पौने दामों में बेचने की फिराक में है। एक कंपनी का भी नाम उछला था। शोरगुल के बाद मामला थम गया। अनिल ने बताया कि पूरे देश में यह संपत्ति करीब एक लाख करोड़ की है, जबकि प्रसार भारती ने इसकी कीमत 42 सौ करोड़ लगायी है। इससे उसकी मंशा जाहिर होती है। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों 48 घंटे प्रसारण सेवा बंद रखा गया था। यदि सरकार अब भी नहीं चेतती है तो 13 दिसंबर से 72 घंटे प्रसारण को बंद रखा जाएगा। अनिल कुमार ने कहा कि आकाशवाणी-दूरदर्शन में कार्यरत कर्मियों को केंद्रीय कर्मचारी घोषित किया जाए। उन्होंने बताया कि प्रसार भारती बनने के बाद न तोकर्मचारियों के लिए सेवा नियमावली बनी और नहीं भर्ती बोर्ड बना। इससे 1988 से ही कर्मचारियों को न तो प्रोन्नति मिली है और न ही नई नियुक्तियां की गई। जबकि बड़ी संख्या में कर्मचारियों के अवकाश ग्रहण करने के कारण कार्य का बोझ बढ़ता जा रहा है। संघ ने कहा कि चोर दरवाजे से प्रबंधन द्वारा मानदेय के आधार पर नियुक्तियां आकाशवाणी व दूरदर्शन में की गई। इसे रोका जाना चाहिए(दैनिक जागरण,रांची,1.12.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।