सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी कर रहे अनुसूचित जातियों,अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ों को प्रोन्नति के मामले में व्यवस्था दी है कि उन्हें यह लाभ तब तक नहीं दिया जा सकता जब तक इस बारे में पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध न हों और वे इसे साबित न करें कि समुदाय को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि इन तबकों को प्रोन्नति में आरक्षण उनका अधिकार नहीं हो सकता। न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर और एके पटनायक की पीठ ने शुक्रवार को राजस्थान के दलित-पिछड़े कर्मियों की याचिका को खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी। पीठ ने कहा, अनुसूचित जातियों,अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ों को प्रोन्नति के वक्त आरक्षण का लाभ उपलब्ध आंकड़ों पर निर्भर करता है। न्यायाधीशों ने कहा, इस बारे में राजस्थान उच्च न्यायालय का फैसला एम.नागराज मामले (सुपरा) पर आधारित है। संविधान के अनुच्छेद 16-(4-ए) के नियमों पर विचार विमर्श की कोई आवश्यकता नहीं है, जिसमें दलितों और पिछड़ों के आरक्षण की व्यवस्था है। राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस बारे में अनुसूचित जातियों-अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ों को प्रोन्नति में आरक्षण दिए जाने कीमांग वाली एक याचिका को खारिज कर दिया था(दैनिक जागरण,दिल्ली, ११.12.2010)।
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