विदेशों में बसे पंजाबियों के पास आज पैसा तो बहुत है, लेकिन बच्चों में पश्चिमी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव से उन्हें चिंता में डाल दिया है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में एनआरआइ पंजाबियों ने अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा के लिए स्वेदश (पंजाब-हिमाचल) भेजना शुरू कर दिया है, ताकि वे अपनी मिट्टी, विरासत और जड़ों से जुड़े रहें। वर्जीनिया में रहे जगरूप सिंह गिल ने अपने दोनों बच्चों को बड़ू साहिब (हिमाचल) में पढ़ने के लिए भेजा है। बाल्टीमोर(अमेरिका) के रणजीत कुमार और टोरंटो के सुपिंदर सिंह के बच्चे भी इसी स्कूल में पढ़ते हैं। करीब आठ माह पहले टोरंटो से बठिंडा पहुंची अमनदीप कौर ने भी अपने दोनों बच्चों का दाखिला सेंट जेवियर स्कूल में कराया है। उनका मानना है कि विदेशी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव में युवा पीढ़ी नशेड़ी होती जा रही है। अमनदीप कहती हैं कि वह अपने बच्चों को मातृभाषा से जोड़े रखने के लिए ही उन्हें यहां लेकर आई है। कैलीफोर्निया में रह रही घोलिया गांव की रुपिंदर कौर ने अपने तीन वर्षीय बेटे को नाभा में दादा-दादी के पास भेज दिया है। बठिंडा के दिल्ली पब्लिक स्कूल के प्रिंसिपल अरुण कुमार और गुरुसर सुधार (लुधियाना) के जतिंदरा ग्रीन फील्ड स्कूल की प्रिंसिपल मनप्रीत कौर बताती हैं कि उनके स्कूलों में भी कई अप्रवासियों के बच्चे शिक्षा हासिल कर रहे हैं। अमेरिकनफे्रंड्स सर्विस कमेटी के दक्षिण-एशिया संगठक और बठिंडा निवासी डा. सुरिंदर सिंह गिल बताते हैं कि कनाडा व अमेरिका में ऐसे बहुत से मामले सामने आ रहे हैं जिनमें युवा पीढ़ी अपने मां-बाप को ओल्डएज होम जाने की सलाह देती है। ऐसे हालत देख पंजाबियों की रूह कांपने लगी है। इसलिए लोग अपने बच्चों को वापस अपनी जड़ों से जोड़ने में लग गए हैं(सुभाष चंद्र,बठिंडा,दैनिक जागरण,31.12.2010)।
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