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18 दिसंबर 2010

राजस्थानःसरकारी विद्यालयों को बच्चों के अनुकूल बनाने की कवायद

सरकारी स्कूलों में पढ़ाई करने के प्रति कम होते विद्यार्थियों के रुझान की समस्या से निजात पाने के लिए अब सरकारी स्कूलों को चाइल्ड फेंड्रली बनाने की कवायद की जाएगी।

सर्व शिक्षा अभियान के तहत राजकीय प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में बाला (बिल्डिंग एज लर्निग एड-स्कूल परिवेश का सीखने के साधन के रूप में विकास) कार्यक्रम चलाया जाएगा। जिसमें सरकारी स्कूलों का स्ट्रक्चर निजी स्कूलों की तर्ज पर विकसित किया जाएगा ताकि बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए न केवल आकर्षित हों बल्कि बोरियत भरे माहौल से परे उनको नया शैक्षणिक वातावरण मिल सकें। पायलेट प्रोजेक्ट के तहत प्रारंभिक तौर पर इस कार्यक्रम में जिले के प्रत्येक खंड की पांच स्कूलें चयनित की गई है।


...तो बदलेगी सूरत: बाला कार्यक्रम से स्कूलों की सूरत बदल सकेगी। प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य कैंपस डवलपमेंट करना है। जिसमें दीवारों पर नैतिक शिक्षा की जानकारी दी जाएगी ताकि कम उम्र में बच्चों में समझ और स्कूलों में बाल केंद्रित वातावरण का निर्माण किया जा सके। शुरुआत में पहली और दूसरी कक्षा के विद्यार्थियों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। इनके कक्षा कक्षों में फर्नीचर से लेकर दीवारों पर चित्रों के माध्यम से शिक्षा में नवाचार के साथ खेलकूद गतिविधियों का समावेश किया जाएगा। इसके लिए हरेक स्कूल को ५क् हजार रुपए का बजट मिलेगा। विशेषकर उन स्कूलों में जहां आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किए जा रहे हैं। वहां बच्चों को आकर्षित करने के लिए फिसलपट्टी और झूले लगाए जाएंगे। 

इसलिए पड़ी जरूरत: स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति रजिस्टर नामांकन संख्या से भरे पड़े हैं लेकि न परीक्षा के समय नामांकन के आंकड़ों की पोल खुल जाती है। आंकड़े बताते हैं कि हर वर्ष सरकारी स्कूलों में बच्चों का नामांकन कम होता जा रहा है। इसलिए बच्चों को आकर्षित करने के लिए शैक्षणिक वातावरण को फ्रेंडली बनाने की कवायद की जा रही है।

नामांकन में वृद्धि होगी: बाला कार्यक्रम की गतिविधियों से विद्यालयों में नामांकन में बढ़ोतरी होगी। कक्षा कक्ष, बरामदे व विद्यालय परिसर के खुले क्षेत्र में बाला गतिविधियों के संचालन से बच्चों का स्कूलों में ठहराव भी बढ़ेगा। - भागीरथ विश्नोई, सहायक अभियंता, सर्व शिक्षा अभियान(पूनमचंद विश्नोई,दैनिक भास्कर,जोधपुर,18.12.2010) 

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