इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम फैसले में कहा है कि उत्तर प्रदेश के डिग्री कॉलेजों के सभी अंशकालिक व्याख्याताओं (प्रोफेसरों)को नियमित शिक्षकों की तरह ही वेतनमान दिया जाए। अदालत ने कहा कि प्रदेश के डिग्री कॉलेजों के अंशकालिक व्याख्याता रेनू तिवारी नामक एक लेक्चरर द्वारा दायर मामले में सुनाए गए निर्णय के तहत ही वेतनमान पाने के हकदार होंगे। खंडपीठ ने रेनू तिवारी के मामले में दिए गए निर्णय में पहले कहा था कि नियमित शिक्षकों को दिया जाने वाला न्यूनतम वेतनमान अंशकालिक व्याख्याताओं को भी दिया जाए। साथ ही अदालत ने याची अंशकालिक व्याख्याताओं को नियमित किए जाने पर विचार करने के भी निर्देश दिए हैं। इस फैसले से राज्य में अंशकालिक व्याख्याताओं को नियमित व्याख्याताओं का पे-ग्रेड मिलने का रास्ता साफ हो गया है। न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह तथा न्यायमूर्ति वेदपाल की पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला डॉक्टर गौरव मिश्र समेत 179 अंशकालिक व्याख्याताओं की याचिकाओं को एक साथ आंशिक रूप से मंजूर करते हुए सुनाया है। प्रदेश के विभिन्न डिग्री कॉलेजों के इन अंशकालिक व्याख्याताओं ने सेवा में नियमित करने तथा नियमित वेतनमान दिए जाने का आग्रह किया था। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई कई व्यवस्थाओं का हवाला देते हुए कहा जीवन के अधिकार में जीवन की गुणवत्ता तथा गरिमा शामिल है। जीवन के मायने पशुवत रहन-सहन से नहीं बल्कि ऐसी जिंदगी से है जो व्यक्ति की न्यूनतम जरूरतों - भोजन, कपड़े और आवास को पूरा करता हो। गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने चार अक्तूबर 1996 को अंशकालिक शिक्षकों रेनू तिवारी तथा अन्य की याचिका को मंजूर करते हुए अपने निर्णय में कहा था कि किसी डिग्री कॉलेज के अंशकालिक व्याख्याता, उसी कालेज के नियमित शिक्षकों को मिलने वाले नियमित वेतनमान के हकदार हैं। अदालत ने राज्य सरकार के 22 जुलाई 1986 के उस आदेश को रद्द कर दिया था जिसके तहत निजी डिग्री कॉलेजों की प्रबंध समिति को एक निश्चित मानदेय पर अंशकालिक व्याख्याताओं की नियुक्ति की इजाजत दी गई थी(दैनिक जागरण,लखनऊ,24.12.2010)।
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