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06 दिसंबर 2010

छत्तीसगढ़:पीएससी की सभी परीक्षाएं कोर्ट में अटकीं

.तीन बार की सिविल सेवा परीक्षा और अन्य परीक्षाओं के उम्मीदवार किसी न किसी नियम से नाराज होकर कोर्ट चले गए। आयोग की सभी परीक्षाओं में विवाद होने की वजह से परीक्षाओं के नतीजे आने में भी सालों लग जाते हैं। तीनों सिविल सेवा परीक्षाओं के अलावा सहायक प्राध्यापक, मेडिकल प्रोफेसर आदि परीक्षाओं से भी नाराज उम्मीदवारों ने कोर्ट की शरण ली है। 2005 में नियुक्त 44 डीएसपी का मामला भी अब तक हाईकोर्ट में चल रहा है।

इतना ही नहीं इसी महीने होने वाली मुख्य नगर पालिका अधिकारी (सीएमओ) के 74 पदों की परीक्षा पर भी कोर्ट का साया मंडराने लगा है। मई में रिक्त पदों की सूचना के लिए निकाले गए विज्ञापन में हाल ही में संशोधन करते हुए विकलांगों को उम्र में दस वर्ष की छूट दी गई है। परीक्षा के कुछ दिनों पहले ही संशोधन करने की वजह से हजारों विकलांग उम्मीदवारों को इसका फायदा नहीं पहुंच पाया।

ऐसे में परीक्षा से वंचित रह गए कई उम्मीदवार परीक्षा पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की तैयारी कर रहे हैं। आयोग की ओर से आयोजित अब तक एक भी परीक्षा बिना किसी विवाद के नहीं हुई है।

कई विभागों की परीक्षा लेनी चाहिए :


प्रतियोगी परीक्षाओं के जानकारों का कहना है कि लोक सेवा आयोग संवैधानिकआयोग है, इसलिए इसे कई विभागों की परीक्षाएं आयोजित करवानी चाहिए। मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में माइनिंग इंस्पेक्टर, नापतौल अधिकारी, स्वास्थ्य अधिकारी आदि की परीक्षाएं पीएससी ही लेता है। छत्तीसगढ़ में ऐसा नहीं हो रहा है। इस तरह की कई परीक्षाएं व्यापमं आयोजित करता है। मंडल संवैधानिक संस्था नहीं है इसलिए ऐसी परीक्षाओं की गोपनीयता पर भी कई सवाल खड़े होते हैं। 

आईएएस की जगह जनप्रतिनिधि
राज्य के प्रमुख छात्र संगठनों ने आयोग के अध्यक्ष के रूप में आईएएस की नियुक्ति का विरोध किया है। पीएससी में अब तक श्रीमोहन शुक्ला, अशोक दरबारी और वर्तमान अध्यक्ष बीएल ठाकुर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की ही नियुक्ति की गई है। पड़ोसी राज्यों मध्यप्रदेश, उड़ीसा, झारखंड आदि राज्यों में जनप्रतिनिधियों की अध्यक्ष के पद पर नियुक्ति की जाती है। इससे उनका लोगों से सीधा जुड़ाव होता है। 

सालों की मेहनत पर पानी फिरा

कई साल से आयोग की परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों का भविष्य ही बदल गया। लगातार परीक्षा आयोजित न होने की वजह से छात्रों की सालों की मेहनत पर पानी फिर गया। अधिकारी बनने का सपना संजोए हजारों छात्र वर्तमान में प्राइवेट नौकरी से ही गुजर बस कर रहे हैं। 

परीक्षा न होने से राज्य बनने के दस साल बाद भी लगभग हर विभाग में अधिकारियों की कमी है। अधिकारियों की लापरवाही के चलते उम्मीदवारों का भविष्य खराब होने के साथ राज्य भी अधिकारियों की कमी से जूझ रहा है। 

"सभी परीक्षाएं नियमों के तहत ही आयोजित की जाती हैं। जो मामले कोर्ट में हैं उनमें कोर्ट के फैसले के बाद ही आगे की कार्यवाही होगी।"

-जेवियर तिग्गा, सचिव छत्तीसगढ़ राज्य लोक सेवा आयोग(असगर खान,दैनिक भास्कर,रायपुर,6.12.2010)

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