मध्यप्रदेश के चिकित्सा शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग की महिमा ही न्यारी है। यहां कुछ भी अजूबा हो सकता है और इसमें इस बात की भी परवाह नहीं होती कि इससे राज्य सरकार की कितनी किरकिरी होगी। इन विभागों में वैसे तो कितने ही ऐसे कारनामे हो चुके हैं जो किसी भी सरकार के लिए शर्मिदगी भरे हो सकते हैं लेकिन हाल में हुआ कारनामा इस मामले में रिकार्ड बनाने की हैसियत रखता है। इस नए कारनामे केतहत तेरह चिकित्सकों की डिग्री को अमान्य मानते हुए उनको बर्खास्त करने की कवायद शुरू की गई है। दिलचस्प बात यह है कि उक्त डाक्टरों ने ये डिग्रियां सरकारी मेडिकल कालेजों से हासिल की हैं जो स्वाभाविक रूप से सरकार के नियंत्रणांतर्गत हैं भले ही उन्हें स्वायत्तता के ढांचे में ढाल दिया गया हो। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि चूंकि उक्त डिग्रियों को एमसीआई की मान्यता नहीं है इसलिए ये डिग्रियां अवैध हैं। किसी भी डाक्टर का पंजीयन एमसीआई ही करती है और स्वाभाविक रूप से इन डाक्टरों का पंजीयन भी एमसीआई द्वारा ही किया गया है। सवाल यह है कि एमसीआई ने उन डाक्टरों का पंजीयन क्यों किया था जबकि उनकी डिग्रियां ही उनकी नजर में अमान्य हैं। जो सरकार इन डाक्टरों की डिग्रियों को अमान्य कर उनको बर्खास्त करने की कार्रवाई कर रही है, उसी सरकार के मेडिकल कालेजों से उक्त डाक्टरों ने ये डिग्रियां प्राप्त की हैं। कई विषयों की पीजी सीटों की मान्यता एमसीआई ने लंबित कर दी है लेकिन सरकारी मेडिकल कालेजों में इनके लिए एडमीशन कैसे हो रहे हैं और इनके कोर्स कैसे चल रहे हैं। क्या सरकार भी इस तरह की डिग्रियां बांटने का कोई रैकेट चला रही है? ऐसे डिग्री कोर्स चलाने वाले प्रायवेट संस्थानों के खिलाफ सरकार दंडात्मक कार्रवाई करती है तो फिर अपने लिए भी क्या वह ऐसी सजा निर्धारित करेगी? पिछले कई सालों से मध्यप्रदेश एमसीआई की वक्र दृष्टि का शिकार है। लगभग हर वर्ष मेडिकल के विभिन्न पाठ्यक्रमों विशेषत: एमबीबीएस तथा पीजी की प्रवेश परीक्षा के लिए फार्म भरने का वक्त आता है तो एमसीआई की आधिकारिकवेबसाइट द्वारा जारी की गई सूची में मध्यप्रदेश के अधिकांश मेडिकल कालेजों पर मान्यता की तलवार लटकती नजर आती है। प्रदेश में अधिकांश सरकारी मेडिकल कालेज इस दायरे में होते हैं। तब भाग दौड़ कर राज्य का चिकित्सा शिक्षा विभाग किसी न किसी तरह पैच-अप वर्क में सफल हो जाता है। हर बार कसमें खाई जाती हैं कि राज्य के मेडिकल कालेजों के टीचिंग स्टाफ एवं सुविधाओं को एमसीआई के मापदंडों को अनुरूप ढाला जाएगा ताकि राज्य के विभिन्न मेडिकल कालेजों की मान्यता पर लटकती तलवार हटे और राज्य के विभिन्न पाठ्यक्रमों को एमसीआई की मान्यता बहाल हो सके लेकिन उसके बाद हमारा चिकित्सा शिक्षा विभाग कुंभकर्णी नींद में सो जाता है। इतना ही नहीं, चिकित्सा शिक्षा विभाग चोरी और सीना जोरी की तर्ज पर यह भी दावा करता है कि एमसीआई सिर्फ परामर्शदात्री संस्था है और वह राज्य के अभ्यर्थियों को पीजी पाठ्यक्रमों में प्रवेश से नहीं रोक सकती। इस तरह मूल विषय से वह सभी का ध्यान बंटाकर अपनी नाकामी पर पर्दा डालने की कोशिश करता रहता है। अब उसने एक नया बहाना निकाल लिया है कि राज्य को केंद्र से मेडिकल कालेजों में शिक्षण स्टाफ तथा समुचित सुविधाओं के लिए धनराशि उपलब्ध कराई जा रही है और उम्मीद है कि इसके फलस्वरूप मेडिकल कालेजों में एमसीआई के पैमाने को पूरा किया जा सकेगा और उन पीजी सीटों की मान्यता बहाल की जा सकेगी जिनकी मान्यता रोक दी गई है। आखिर डाक्टरों के साथ यह क्रूर खेल कब तक खेला जाता रहेगा? चिकित्सा शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह जल्दी से जल्दी मेडिकल कालेजों में समुचित टीचिंग स्टाफ तथा अन्य सुविधाओं को उपलब्ध कराकर ऐसे हालात पैदा करे ताकि एमसीआई से इन सभी सीटों की मान्यता की अविलंब बहाली हो सके(संपादकीय,दैनिक जागरण,भोपाल,18.12.2010)
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