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18 दिसंबर 2010

मध्यप्रदेशःरैगिंग से पहले ही सरकारी कॉलेज फेल

शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए दिन रात मशक्कत कर रही राज्य सरकार को उसके ही कालेजों ने जोर का झटका दिया है। अपने कालेजों की हालत देखकर राज्य शासन ने न केवल रैगिंग और ग्रेडिंग का योजना को ही ठंडे बस्ते में डालना उचित समझा है। बल्कि यह मानने में गुरेज नहीं किया है कि सरकारी कालेज ग्रेडिंग के लायक ही नहीं है। जानकारी के अनुसार उच्च शिक्षा विभाग ने भी तकनीकी शिक्षा के समान अपने कालेजों और शिक्षकों की ग्रेडिंग व रैगिंग करने का मन बनाया था। विभागीय मंत्री द्वारा बकायदा मंचों से इसकी घोषणा करते हुए समय सीमा भी तय कर दी थी। मगर प्रस्ताव बनते ही सारे कालेज फेल हो गए हैं। सूत्रों की मानें तो विभाग के प्रमुख सचिव ने इस प्रस्ताव को पहली नजर में ही ठुकरा दिया। इसकी वजह उन्होंने प्रदेश के कालेजों को ही माना है। बताया जाता है कि विभाग के अधिकांश अधिकारी इस योजना के पक्ष में नहीं थे। इसके लिए तर्क दिया गया कि ग्रामीण क्षेत्र के कालेज राजधानी के नूतन कालेज से तुलना कैसे कर सकते हैं। इसके समान वे चाहकर भी नहीं बन सकते। भवन से लेकर शिक्षक, कार्यालयीन स्टाफ, संसाधन और सुविधाओं आदि को लेकर इन कालेजों में बराबरी नहीं हो सकती। सालों साल तक शहरों के सुविधा संपन्न कालेज नंबर बने रहेंगे तो कस्बाई कालेज पूरी मेहनत के बाद भी अपने स्थान से एक कदम आगे नहीं बढ़ सकते। सूत्रों की मानें तो इस माथापच्ची के बाद पूरी योजना पर ही पर्दा डालने की तैयारी भी कर ली गई है। फिलहाल इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। बाद में ऊपर से भी इस पर मोहर लगवा ली जाएगी। जानकारी के अनुसार प्रदेश के अधिकांश कालेज अपने स्थापना काल से ही शिक्षकों की तंगी से जूझ रहे हैं। ऐसे भी कालेज प्रदेश में मौजूद हैं, जहां एक बाबू के अलावा कोई नहीं है। अतिथि विद्वान ही अध्यापन की कमान संभाले हैं। खुद के भवन के लिए कालेज तरस रहे हैं तो जमीन आवंटित करने की प्रक्रिया शासन में ही लंबित है। ऐसे में विभाग यदि ग्रेडिंग की योजना को क्रियान्वित करता तो शासन की ही गलती सामने खुल जाती। कई सरकारी कालेजों से तो प्रायवेट कालेज ही बेहतर रैंक लेने की स्थिति में है(दैनिक जागरण,भोपाल,18.12.2010)।

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