चिकित्सा विश्वविद्यालय में शिक्षण व ट्रेनिंग के नाम पर बाहर जाने वाले डाक्टरों को बांड भरना होगा। बॉड भरने के बाद ही उन्हें शिक्षण व प्रशिक्षण के लिए लम्बे अवकाश पर जाने की अनुमति मिल सकेगी। चिकित्सा विश्वविद्यालय ने अब पढ़ायी के नाम पर बाहर जाने वाले डाक्टरों के पैरों में बेड़ियां डालने का निर्णय लिया है। चिकित्सा विश्वविद्यालय के हड्डी रोग व मानसिक रोग विभाग समेत एक दर्जन विभाग ऐसे है जिसमें तैनात डाक्टर पढ़ायी के नाम पर लम्बे अवकाश जा चुके है। अधिकारियों का कहना है कि ज्यादातर मामलों में विदेश प्रशिक्षण के लिए गये डाक्टर लौटकर वापस नहीं आते है और न ही उनकी सूचना ही आती है। ऐसे में एक ओर जहां विभाग में सम्बन्धित चिकित्सक का पद रिक्त पड़ा रहता है वहीं दूसरी ओर मरीजों को भी इससे परेशानी उठानी पड़ती है। इसके साथ ही विश्वविद्यालय को इससे दोहरा नुकसान होता है। सूचना न होने पर सम्बन्धित डाक्टर की जगह सुरक्षित बनी रहती है। इसके बाद लम्बी कार्रवाई के बाद विभाग छोड़ने की जानकारी होने पर इस पद को भरने में काफी परेशानियां उठानी पड़ती है। इसमें हड्डी रोग विभाग के आशीष महेन्द्रा के साथ ही अन्य तमाम मामले है। वर्तमान में चिकित्सा विश्वविद्यालय के हृदय रोगविभाग के डा. रिशी सेठी के साथ ही वृद्धावस्था मानसिक रोग व यूरोलाजी विभाग के डाक्टर लम्बे अवकाश पर है। प्रशासन के विभाग के डाक्टर लम्बे अवकाश पर है। प्रशासन के निर्देश के अनुसार डाक्टरों को लौट कर चिकित्सा विश्वविद्यालय में तीन या पांच साल काम करना जरूरी होगा। यह शपथपत्र भरने के बाद ही उन्हें लम्बा अवकाश दिया जाएगा(राष्ट्रीय सहारा,लखनऊ,5.12.2010)।
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