उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में प्राथमिक शिक्षा की अजब तस्वीर है। कहीं तो बच्चों के पढ़ने के लिए स्कूल नहीं है और कहीं स्कूलों में पढ़ने के लिए बच्चे ही नहीं हैं। सीमांत जिले चमोली के हालात तो चौंकाने वाले हैं, जहां 15 ऐसे प्राथमिक विद्यालय हैं, जहां कुल छात्र संख्या पांच से भी कम है। कुछ स्कूलों में तो छात्र संख्या महज दो है। ऐसे में इन विद्यालयों की कई कक्षाओं में पढ़ाई ही नहीं होती। इस तरह के हर स्कूल के संचालन में सरकार प्रतिमाह 30-40 हजार रुपया खर्च कर रही है। जोशीमठ ब्लॉक के राजकीय प्राथमिक विद्यालय पिनोला घाट की कुल छात्र संख्या दो है। दीपक परमार व साक्षी परमार नाम के ये दोनों भाई-बहन हैं। इत्तेफाक देखिए कि दोनों कक्षा चार में ही पढ़ते हैं। इन दोनों बच्चों को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक तैनात है और उनका मिड-डे मील बनाने के लिए भोजन माता की भी नियुक्तिहै। मजेदार बात यह है कि गत चार वर्षो से यही दोनों भाई-बहन इस विद्यालय के छात्र-छात्राएं हैं। जैसे-जैसे ये आगे की कक्षाओं में उत्तीर्ण हो रहे हैं, पिछली कक्षा में छात्र संख्या शून्य हो जाती है। कुल मिलाकर कहें तो इन भाई-बहिनों की वजह से ही विद्यालय में रौनक और उसका वजूद है। आर्थिक लिहाज से मूल्यांकन करें तो इस विद्यालय के संचालन में सरकार प्रतिवर्ष चार से साढ़े चार लाख रुपया खर्च कर रही है। निजी विद्यालयों के हिसाब से आकलन करें तो राजधानी के प्रतिष्ठित कान्वेंट स्कूलों में एक छात्र की प्रतिवर्ष फीस व बोर्डिग का खर्च इससे काफी कम है। चमोली जिले का यह एक मात्र उदाहरण नहीं है। इसके अलावा 14 ऐसे राजकीय प्राथमिक विद्यालय हैं, जिनमें कुल छात्र संख्या पांच अथवा इससे कम है। इन विद्यालयों के संचालन में सरकार प्रतिवर्ष आधा करोड़ से अधिक की राशि खर्च कर रही है।
ये हैं वो विद्यालय :
चमोली जिले के जसपुर, जुवा ग्वाड़, पिनोला घाट व कुंजापाणी में दो-दो, बांतोली में सलधार तीन-तीन, चनियाली, ग्वाड़, रेखाल, डांग कुराला, टुंडी तिरोसी व कोठार में चार-चार तथा, मुरंडा व इज्जर के प्रथामिक विद्यालयों में छात्र संख्या पांच-पांच है(दीपक फरस्वाण,दैनिक जागरण,गोपेश्वर,31.12.2010)।
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