प्रगतिशील एवं समग्र इतिहास अध्ययन के उन्नयन,इतिहास के जन सरोकारों के संस्थापन, इतिहास चेतना के उन्मेषण और मिथिला इतिहास एवं संस्कृति के सम्बर्द्धन के लिए स्थापित मिथिला इतिहास संस्थान ने राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान बनाने में कामयाबी हासिल की है। संस्थान के सचिव व लनामिवि इतिहास विभाग के प्राध्यापक डा. धर्मेद्र कुमार ने उक्त तथ्य को रखते हुये संस्थान की ओर से होने वाली द्वितीय द्विवार्षिकी सम्मेलन की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि तीन सितंबर 2005 को स्थापित इस संस्थान का प्रथम सम्मेलन 18-19 फरवरी 2006 को एएचएसए कालेज मधुबनी में हुआ, जिसमें बिहार, झारखंड व नेपाल के 110 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में करीब 60 शोधपरक लेख प्रस्तुत किया गया। लब्ध प्रतिष्ठित इतिहासकार डा. विवेकानंद झा की अध्यक्षता में 15-16 मार्च 2008 को इतिहास विभाग में आयोजित सम्मेलन में देश के विभिन्न क्षेत्रों के 210 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। साथ ही मिथिला समेत भारतीय इतिहास के विभिन्न विषयों पर 140 शोध पत्रों की प्रस्तुति की गयी। इस संस्थान का अगला सम्मेलन 22-23 जनवरी को एमएलएसएम कालेज में प्रस्तावित है। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में सहभागिता के लिए सदस्यता होना आवश्यक है। इतिहास अध्ययन में रूचि रखने वाला कोई भी वयस्क व्यक्ति, जिसकी न्यूनतम योग्यता स्नातक कला इतिहास प्रतिष्ठा अथवाकिसी भी अनुशासक से स्नातकोत्तर उपाधि हो, सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित दो दिवसीय सम्मेलन में प्राचीन मिथिला, मध्य कालीन मिथिला, आधुनिक मिथिला व मिथलेश्वर इतिहास विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किया जायेगा। साथ ही सिम्पोजियम, स्मृति व्याख्यान व समूह विमर्श व उत्कृष्ट शोध पत्र प्रस्तुति के लिए प्रो. विजय कुमार ठाकुर स्मृति पुरस्कार दिया जायेगा। शोध पत्र अंग्रेजी, हिन्दी व मैथिली में स्वीकार किया जायेगा। पांच जनवरी तक पंजीयन शुल्क व आलेख संस्थान को प्राप्त हो जाना चाहिए(दैनिक जागरण संवाददाता,दरभंगा,6.12.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।