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06 दिसंबर 2010

कानपुर का राष्ट्रीय शर्करा संस्थानःशिक्षकों का टोटा, शोध बना धोखा

राष्ट्रीय शर्करा संस्था (एनएसआइ) में संकाय सदस्यों की कमी से जहां परामर्श कार्य ठप चल रहा है वहीं शिक्षण और शोध भी प्रभावित है। संस्था में मात्र एक ही प्रोफेसर थे वह इन दिनों निदेशक पद का दायित्व संभाल रहे हैं। बीते दस वर्षों से संस्थान में अफसरों के पद भी नहीं भरे गये हैं।
1936 में देश के गन्ना किसानों की मदद के लिए राष्ट्रीय शर्करा संस्था की स्थापना की गयी थी। संस्था का प्रमुख कार्य अध्यापन, अनुसंधान एवं चीनी मिलों को तकनीकी सलाह देना है। एनएसआइ में 363 पदों के सापेक्ष 135 से अधिक पद खाली चल रहे हैं। 14 प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष के पद खाली चल रहे हैं तो 14 सहायक पदों के सापेक्ष आधा दर्जन पद खाली चल रहे हैं। संकाय सदस्यों की कमी के चलते सहायक प्रोफेसर एवं कनिष्ठ तकनीकी अधिकारी शिक्षक कार्य के साथ-साथ वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, स्टेट अफसर, गार्डेन एवं फार्म का अतिरिक्त कार्य भी करते हैं। कर्मचारी संघ के मंत्री अखिलेश पांडेय ने बताया कि बीते वर्षो में कई बार प्रधानमंत्री से लेकर मंत्रालय के आला अधिकारियों को रिक्त पदोंको भरने के लिए ज्ञापन से मांग भी की गई लेकिन कहीं कोई कार्रवाई नहीं हुई। शिक्षकों एवं तकनीकी कर्मचारियों की कमी से संस्था में अध्यापन गुणवत्ता घटी है तो शोध भी प्रभावित हैं। चीनी मिलों को सलाह देने का काम भी ठप चल रहा है। गेस्ट फैकल्टी से काम लिया जाता है लेकिन गुणवत्ता नहीं मिल रही है(दैनिक जागरण संवाददाता,कानपुर,6.12.2010)।

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