राज्य के विश्वविद्यालय शिक्षकों को नववर्ष के मौके पर (जनवरी में) शायद ही वेतन मिले। चालू वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक उन्हें विश्र्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नये वेतनमान के अनुरूप वेतन भुगतान न होने का भी अंदेशा है। दरअसल, नये वेतनमान के अनुरूप बढ़ा हुआ वित्तीय बजट भेजने में विश्वविद्यालय सुस्त हैं। बजट न मिलने से शिक्षकों को नये वेतनमान का भुगतान कैसे होगा-यह अबूझ पहेली बना हुआ है। वैसे सरकार फरवरी 2011 तक के वेतन आवंटन के मद में पुराने वेतनमान के हिसाब से राशि स्वीकृत कर चुकी है। कैबिनेट ने जुलाई में ही नया वेतनमान देने पर अपनी स्वीकृति दे दी थी। इसके आलोक में अक्टूबर 2010 से संशोधित दर से वेतन का भुगतान होना था, मगर विश्वविद्यालयों द्वारा अब तक वार्षिक बजट विभाग को उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के प्रोन्नति के मामले अरसे से लटके हुए हैं। उस काम को पूरा कर नये वेतनमान के अनुरूप उनका फिटमेंट अलग समस्या है। सूत्रों के अनुसार इसकी एक प्रमुख वजह कुलाधिपति सह राज्यपाल देबानंद कुंवर द्वारा कुलपतियों के वित्तीय अधिकारों पर रोक लगाना है। दरअसल जनवरी में पटना विश्वविद्यालय समेत पांच विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का कार्यकाल समाप्त होने वाला है। राजभवन ने नये कुलपतियों की नियुक्ति की दिशा में कोई पहल नहीं की है, जबकि जनवरी के आगमन में अब कुछ घंटे रह गये हैं। जानकारों के अनुसार मात्र बजट बन जाने से भुगतान नहीं होने वाला है।बजट मिलने के बाद वित्त विभाग उसकी समीक्षा करेगा तथा संतुष्ट होने पर बढ़े दर पर राशि आवंटन के लिए उसे यूजीसी को भेजा जायेगा। जो व्यवस्था है, उसके तहत इस मद में यूजीसी मार्च 2010 तक के खर्च का 80 फीसदी वहन करेगा। इसके बाद सारा बोझ राज्य सरकार को उठाना है। अब सब कुछ कुलाधिपति कार्यालय पर निर्भर करता है। वह कब तक वित्तीय अधिकारयुक्त नये कुलपतियों की नियुक्ति करता है। नये कुलपतियों के आने के बाद ही शिक्षकों के वेतन का निर्धारण होगा तथा इसके आधार पर बजट तैयार होगा और उसके बाद आगे की कार्रवाई की जायेगी। इन सब में काफी वक्त लगेगा। लिहाजा राज्य सरकार की मंजूरी के बावजूद नया वेतनमान व बकाये के भुगतान के लिहाज से विश्वविद्यालय शिक्षकों के लिए अभी दिल्ली दूर ही है(दैनिक जागरण,पटना,30.12.2010)।
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