लखनऊ विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कालेजों के लिए न कोई नियम है न कानून। मामला चाहे दाखिला देने का हो या फिर परास्नातक पाठ्यक्रम खोलने जाने का। शासन की मंजूरी के बिना ही राजधानी के कई एडेड डिग्री कालेजों में परास्नातक कक्षाएं चलाकर उपाधियां बांटने का खेल चल रहा है। लविवि के सहयुक्त कालेजों में कई कालेजों में तो यह खेल सालों से चल रहा है। ज्यादातर पीजी कालेजों ने 60-60 सीटों पर प्रवेश ले रखे है। विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक ने माना कि यह अनियमित है और ऐसे कालेजों के छात्र-छात्राओं को परीक्षा में शामिल नहीं होने दिया जाएगा। पुराने लखनऊ की श्रुति (बदला नाम) ने एक कालेज में एमएमसी में प्रवेश लिया, परीक्षा फार्म जमा करने की बारी आयी तो उन्हें पता चला कि दाखिला मानकों कुछ खामी है। उनकी डिग्री फंस सकती है। परेशान श्रुति लविवि के चक्कर काट रही है। यहां पीजी पाठ्यक्रम तो है, लेकिन स्नातक स्तर पर उस विषय की पढ़ाई नहीं होती। परीक्षा नियंत्रक का कहना है कि यह कोर्स कोर्ट के आदेश से चल रहा है, लेकिन हो गलत रहा है। विश्वविद्यालय को कोर्ट के समक्ष अपनी बात रखकर आदेश को रद कराना चाहिए। यह कहानी अकेले श्रुति की नहीं बल्कि आधा दर्जन महाविद्यालयों के पीजी कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्र-छात्राओं की है। पुराने लखनऊ में एक गल्र्स कालेज में इसी सत्र एमए के दो पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए सिर्फ इस बिना पर मंजूरी दे दी गयी, कि कार्य परिषद से कुलपति मंजूरी ले लेंगे। इस महाविद्यालय में प्रवेश तो हो गये, लेकिन सम्बद्धता अभी तक नहीं मिल सकी है। सीतापुर रोड के एक डिग्री कालेज को मास कम्युनिकेशन और जुलोजी में पीजी कक्षाएं चलाने की सम्बद्धता लविवि ने दे दी है, हालांकि शासन से मान्यता अब तक नहीं मिली है। यहां पीजी के दोनों पाठ्यक्रमों में 60-60 सीटों पर प्रवेश किये गये है। चौक क्षेत्र के डिग्री कालेज में भी इसी तरह का खेल हुआ है। यहां के 13 छात्रों के परीक्षा फार्म लविवि के परीक्षा विभाग से लौटा दिये गये है। हालांकि कालेज प्राचार्य को अभी भी उम्मीद है कि मंगलवार तक सभी बच्चों के फार्म जमा हो जाएंगे। कैसरबागक्षेत्र के एक पीजी कालेज ने एमकाम में शिक्षकों के न होने के बाद भी दो वर्ष पूरे कर लिये है, यहां के छात्र अब अंतिम सेमेस्टर में पहुंच गये है, लेकिन शिक्षकों का विवि से अनुमोदन अभी तक नहीं हो सका है। इन कालेजों में शामिल कुछ ने तो पैनल निरीक्षण कराकर गेंद लविवि के पाले में डाल दी है। लविवि सहयुक्त डिग्री कालेज स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम चलाने की मंजूरी देने को अधिकृत है, जबकि परास्नातक की मान्यता शासन से मिलती है। शासन से महाविद्यालय को सिर्फ एक बार दो वर्ष के लिए अस्थायी रूप से दी जाती है, इसी दौरान स्थायी मान्यता लेनी होती है, लेकिन राजधानी के करीब आधा दर्जन से ज्यादा पीजी कक्षाएं चलाने वाले कालेजों की एक सी कहानी है। हरदोई रोड के महाविद्यालय में एमए व एमकाम की कक्षाओं के लिए शासन ने वर्ष 2005 में दो वर्ष के लिए मान्यता दी थी जो 2007-08 में खत्म हो चुकी है। हालांकि यहां के प्राचार्य का कहना है कि उन्होंने मान्यता की प्रक्रिया पूरी करने के बाद विवि को पत्रावली सौप दी है। आगे की कार्रवाई विविऔर शासन के बीच की है। सूत्रों का कहना है कि 19 नवम्बर 2009 में जारी शासनादेश में कहा गया था कि जिनकी प्रवेश की प्रक्रिया शासन स्तर पर लम्बित है, उन्हें प्रवेश लेने की मंजूरी दे दी जाती है, लेकिन वर्ष 2010-11 में इस बात का अभी तक कोई शासनादेश नहीं आया है(कमल तिवारी,राष्ट्रीय सहारा,लखनऊ,5.12.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।