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09 दिसंबर 2010

उत्तराखंडःसमूह-ग की भर्तियों में भाषा का मुद्दा गरमाया

उत्तराखंड क्रांति दल ने समूह ग की भर्तियों में स्थानीय बोली की अनिवार्यता समाप्त करने की सरकार की घोषणा को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। पार्टी ने सरकार से मांग की है कि स्थानीय बोलियों के साथ ही राज्य के मैदानी हिस्सों और आदिवासी बोली को भी शामिल कर सरकारी नौकरियों में स्थानीय बोलियों की अनिवार्यता को यथावत रखा जाए। उधर, केंद्रीय श्रम राज्य मंत्री व हरिद्वार के सांसद हरीश रावत ने सरकार की इस घोषणा का स्वागत किया है। उक्रांद के मुख्य प्रवक्ता सतीश सेमवाल ने एक बयान में कहा कि जो लोग समूह ग की भर्ती में स्थानीय बोली की अनिवार्यता समाप्त करने की पैरवी कर रहे हैं, वे राज्य के हितों पर कुठाराघात कर समरसता का माहौल बिगाड़ रहे हैं। सरकार की स्थानीय बोली की अनिवार्यता खत्म करने संबंधी घोषणा पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उक्रांद प्रवक्ता ने कहा कि इससे राज्य के बेरोजगारों के हितों के साथ खिलवाड़ होगा। दूसरी तरफ, राज्य आवास एवं विकास परिषद के अध्यक्ष नरेश बंसल ने कहा कि मुख्यमंत्री डा. निशंक के साथ वार्ता में स्थानीय बोली की अनिवार्यता समाप्त करने पर सहमति हो चुकी है। उन्होंने कहा कि सरकार के इस निर्णय से भाजपा की व्यापक सोच प्रकट होती है। उधर, केंद्रीय राज्य मंत्री हरीश रावत ने सरकार की घोषणा का स्वागत करते हुए कहा कि राज्य के बहुभाषीय समाज के किसी भी वर्ग पर किसी भी बोली को नहीं थोपा जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रदेश सरकार विभिन्न बोलियों के संरक्षण व इन्हें लिपिबद्ध करने के लिए एक कोष की स्थापना करे। उधर,उत्तराखंड जाट महासभा ने समूह-ग की नियुक्तियों में भाषा-बोली का ज्ञान जरूरी किए जाने वाले शासनादेश का विरोध करते हुए इसे वापस लेने की मांग की है। साथ ही मूल निवास प्रमाणपत्र बनवाने की प्रक्रिया के सरलीकरण करने की भी मांग की। बुधवार को महासभा के अध्यक्ष ओमपाल सिंह राठी के नेतृत्व एक प्रतिनिधिमंडल ने विधानसभा अध्यक्ष हरबंस कपूर से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में निवास करने वाले मैदानी पृष्ठभूमि के लोगों की आबादी काफी है। ऐसे में यदि सेवाओं में बोली-भाषा की बंदिशें होंगी तो वह अपने ही राज्य में खुद को गैर समझने लगेंगे। इस फैसले से उनमें आक्रोश नजर आ रहा है। प्रतिनिधिमंडल ने विस अध्यक्ष से इस तरह के किसी भी शासनादेश को वापसी लेने की मांग करते हुए कहा कि यदि इसे निरस्त नहीं किया गया तो महासभा आंदोलन करने को मजबूर होगी(दैनिक जागरण,देहरादून,9.12.2010)।

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