प्रदेश के पांच में से चार राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालयों में पठन-पाठन बंद है। इसका मुख्य कारण शिक्षकों की कमी है, जिसे अब तक दूर नहीं किया जा सका है। इसके अलावा प्रदेश में आयुष चिकित्सकों के करीब 1200 पद अभी भी रिक्त हैं। बिहार प्रदेश आयुर्वेद सम्मेलन ने इन कमियों की ओर स्वास्थ्य मंत्री अश्रि्वणी कुमार चौबे का ध्यान आकृष्ट किया है।
सम्मेलन के अध्यक्ष डा.अरूण कुमार और प्रांतीय मंत्री डा.धनंजय कुमार ने रविवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा कि शिक्षकों की कमी के कारण भारतीय चिकित्सा परिषद ने इन चार महाविद्यालयों में नामांकन पर रोक लगायी है। फिलहाल प्राध्यापक के 23 में से 20 पद रिक्त हैं। प्रवाचक के 28 में से 13 तथा व्याख्याता के 130 में से 83 पद खाली हैं।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा पिछले दिनों 1474 आयुष चिकित्सकों को नियोजन किया गया है, लेकिन अभी भी आयुष चिकित्सकों के 1200 पद खाली हैं। इन रिक्त पदों पर 1474 पदों पर नियोजन के लिए बने पैनल से ही नियुक्ति की जाए। संविदा के आधार पर नियोजित होने वाले आयुष चिकित्सकों को अभी 15,000 रुपये प्रतिमाह मिल रहे हैं, जबकि एलोपैथ चिकित्सकों का वेतन 35,000 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया है। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर आयुर्वेदिक एवं अन्य देशी चिकित्सा पद्धति की दवाइयां उपलब्ध नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कायचिकित्सा,पंचकर्म, शल्य यंत्र, शालाक्य, मौलिक सिद्धांत आदि विषयों में भी पीजी की पढ़ाई आरंभ की जाए। अभी केवल द्रव्यगुण एवं रस शास्त्र में स्नातकोत्तर शिक्षा की व्यवस्था है। उनके अनुसार आयुर्वेदिक चिकित्सा पदाधिकारियों के 317 स्वीकृत स्थायी पदों में से 154 पद अभी रिक्त हैं। औषधि निरीक्षक(आयुर्वेद/यूनानी) के 11 पद स्वीकृत हैं, लेकिन अभी एक ही निरीक्षक कार्यरत हैं(दैनिक जागरण संवाददाता,पटना,26.12.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।