एक ही अंकपत्र की दो जांच, एक फर्जी तो दूसरी सही। यह काम कहीं और नहीं संपूर्णानंद संस्कृत विश्र्वविद्यालय में हुआ है। गत दिनों विशिष्ट बीटीसी में चयनित इस विश्वविद्यालय के दो दर्जन छात्रों के अंकपत्रों को फर्जी घोषित कर दिया गया। महत्वपूर्ण पहलू यह है कि डायट, इलाहाबाद के कहने पर संस्कृत विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग ने इन छात्रों के अंकपत्रों तथा प्रमाणपत्रों की दो बार जांच की व दोनों में अलग-अलग रिपोर्ट दी है। पहली रिपोर्ट में इन्हें फर्जी तो दूसरी में इन्हीं छात्रों को सही घोषित किया गया है। इस अजब सत्यापन से डायट इलाहाबाद के सामने असंमजस खड़ा हो गया है। बहरहाल, उसने उक्त दोनों सत्यापन रिपोर्ट विश्वविद्यालय प्रशासन को प्रेषित करते हुए पुन: तीसरी बार जांच कर रिपोर्ट मांगी है। संस्कृत विश्र्वविद्यालय के प्रशासनिक मशीनरी में इसे लेकर खलबली मची हुई है। जिम्मेदार कोई भी व्यक्ति इस मामले में कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक, इलाहाबाद विशिष्ट बीटीसी में संस्कृत विश्वविद्यालय के सर्वाधिक छात्र चयनित हुए हैं। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, इलाहाबाद की ओर से पिछले दिनों इन अभ्यर्थियों का सत्यापन कराया गया। पहली बार सत्यापन में पर्ज्व मध्यमा के छात्रों के 28 अंकपत्रों में से 11 को फर्जी करार तथा 17 को सही घोषित किया गया। इसी प्रकार इन छात्रों के उत्तर मध्यमा के 25 अंकपत्रों में आठ फर्जी घोषित किए गए। इसी क्रम में शास्त्री के भी दर्जन भर से अधिक अंकपत्रों को फर्जी बताया गया। ये अंक व प्रमाण पत्र 1999 से लेकर वर्ष 2009 के बीच के हैं। दूसरी जांच में इन सभी प्रमाण पत्रों को सही बताया गया है। दोनों सत्यापन में विरोधाभास को देखते हुए इलाहाबाद के डायट प्राचार्य संजय सिन्हा ने संस्कृत विश्वविद्यालय को पत्र लिखकर दोनों जांच रिपोर्ट वापस करते हुए पुन: जांच कर रिपोर्ट देने को कहा है। उन्होंने इस पत्र में यह भी जिक्र किया है कि पहली बार सत्यापन के आधार पर उक्त अभ्यर्थियों के खिलाफ फर्जीवाड़ा के मामले में डायट की ओर से प्राथमिकी भी दर्ज कराई गयी थी। दोबारा सत्यापन रिपोर्ट से असंमजस की स्थिति हो गई है। आखिर सही क्या है। जांच रिपोर्ट में विरोधाभास पर टिप्पणी करते हुए विश्वविद्यालय की सत्यनिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगाया गया है। कहा गया है कि यह खेदपूर्ण व आपत्तिजनक स्थिति है। डायट प्राचार्य ने इस प्रकरण को संस्कृत विश्र्वविद्यालय को गम्भीरता से लेने का सुझाव भी दिया है(दैनिक जागरण,वाराणसी,21.12.2010)।
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