फार्मा इंडस्ट्री में भारत का रुतबा रिसर्च एंड डेवलपमेंट से लेकर मैन्युफैक्चरिंग, क्लिनिकल ट्रायल, जेनेटिक ड्रग रिसर्च तक फैल चुका है। दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते फार्मास्युटिकल क्षेत्र को आज शानदार उद्योग में शुमार किया जाने लगा है। दवाओं के वितरण से लेकर मार्केटिंग, पैकेजिंग, मैनेजमेंट, सभी फार्मास्युटिकल के अहम हिस्से हैं। इसमें भारत की भागीदारी सबसे अहम है। अहम वजह यह है कि भारत में इस समय 23 हजार से भी अधिक रजिस्टर्ड फार्मास्युटिकल कंपनियां है। इस इंडस्ट्री में तकरीबन दो लाख लोगों को काम मिला हुआ है। फार्मा इंडस्ट्री की वर्तमान प्रगति को देखते हुए अगले कुछ वर्षों में इस इंडस्ट्री को दो से तीन गुना स्किल्ड लोगों की जरूरत होगी।
क्लिनिकल रिसर्च आउटसोर्सिंग यानी ‘ओआरजी’ रिसर्च फर्म के मुताबिक भारतीय फार्मा उद्योग 12-13 फीसदी की दर से वृद्घि कर रहा है। मैकिंजे की ताजा रिपोर्ट भी इस बात को पुख्ता करती है। मैकिंजे की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक इस उद्योग में तीन गुणा बढ़ोत्तरी होगी। ये तो रिपोर्ट है। वैसे भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग 24 हजार करोड़ रुपये से अधिक का है, जिसमें निर्यात भी शामिल है। वर्ष 2005 में देश की फार्मा इंडस्ट्री का कुल प्रोडक्शन करीब 9 बिलियन डॉलर था, जिसके वर्ष 2010 के अंत तक 25 बिलियन हो जाने की उम्मीद जताई गई है। इसकी वाजिब वजह भी है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान हमारे देश में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है। आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का तेजी से विस्तार हुआ है।
कार्य प्रकृति
सामान्य उत्पादों की मार्केटिंग के लिए जहां सीधे डीलर या कस्टमर से संपर्क करना होता है, वहीं दवाओं की मार्केटिंग में डॉक्टर अहम कड़ी होता है। दवा की खूबियों के बारे में डाक्टरों को संतुष्ट करना जरूरी होता है, तभी वे इसे मरीजों के प्रिस्क्रिप्शन में लिखते हैं। इसके अलावा दुकानों में दवा की उपलब्धता का पता भी रखना होता है। इन्हीं जरूरतों को देखते हुए फार्मा मैनेजमेंट कोर्स की शुरुआत की गई है। फार्मा मैनेजमेंट के क्षेत्र में काम करने के लिए मैनेजमेंट के साथ दवा निर्माण में इस्तेमाल होने वाले पदार्थ एवं तकनीक का भी ज्ञान होना चाहिए। दवा कंपनियां मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव, मार्केटिंग ऑफिसर के रूप में प्रशिक्षित लोगों को ही रखना चाहती हैं। 2005 के बाद मल्टीनेशनल कंपनियों के भारत में आगमन से बाजार में अधिक उछाल आया है। वे भारतीय कंपनियों के साथ गठजोड़ कर सस्ते प्रोडक्ट बनाने और बेचने लगी हैं। इसका असर यहां के बाजारों पर पड़ा है।
योग्यता
100 से अधिक संस्थानों में डिग्री और 200 से अधिक संस्थानों में डिप्लोमा कोर्स चलाए जा रहे हैं। फार्मा के फील्ड में अगर करियर बनाना है तो इसके लिए न्यूनतम योग्यता है 12वीं। और न्यूनतम मार्क्स है 50 प्रतिशत। यूं तो किसी भी फैकल्टी के छात्र इस कोर्स के लिए योग्य हैं, लेकिन विज्ञान संकाय खासकर जीव विज्ञान, कैमिस्ट्री, जूलोजी और बॉटनी के छात्रों के लिए फार्मा क्षेत्र में करियर बनाना आसान है। बीफार्मा और डीफार्मा के अलावा आप फार्मास्युटिकल में अनुसंधान और शोध भी कर सकते हैं।
कौन-कौन से हैं कोर्स?
इनवोटेक फार्मा बिजनेस स्कूल की निदेशक उषा गुप्ता का कहना है कि फार्मा क्षेत्र आज सर्वाधिक संभावनाओं से भरा है। मास्टर्स इन फार्मेसी, बैचलर ऑफ फार्मेसी, डिप्लोमा इन फार्मेसी, पीजी डिप्लोमा इन फार्मास्युटिकल एवं हैल्थ केयर, प्रोफेशनल डिप्लोमा इन फार्मास्युटिकल मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन फार्मा सेल्स एंड मार्केटिंग, एमबीए इन फार्मा मैनेजमेंट जैसे कोर्स हैं। इन पाठय़क्रमों की अवधि तीन महीने से 3 वर्ष के बीच है।
कहां-कहां है जॉब
फार्मासिस्ट
फार्मसी के डिग्रीधारकों को सरकारी व गैर-सरकारी अस्पतालों के फार्मा विभाग में नौकरी मिल जाती है। विदेशों में भी फार्मासिस्ट की खूब डिमांड है। इसके अलावा जो खुद की फार्मास्युटिकल यूनिट शुरू करना चाहते हैं, उन्हें भी डिग्री के आधार पर लाइसेंस मिल जाता है।
रिसर्च ऑफिसर एवं साइंटिस्ट
इस फील्ड में शोध की काफी गुंजाइश है। नामी दवा कंपनियों के रिसर्च एंड डेवलपमेंट विंग में वर्तमान समय में हो रहे विस्तार को देखते हुए बतौर वैज्ञानिक संभावनाओं की कमी नहीं है।
मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव
प्रत्येक फार्मा कंपनी बाजार में अपनी पकड़ मजबूत बनाने, दवाओं के प्रचार-प्रसार के लिए बड़ी संख्या में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव एपॉइंट करती है।
मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव
यह सामान्य उत्पादों की मार्केटिंग से बिलकुल अलग है। दवाओं की मार्केटिंग में डॉक्टर अहम होता है, उन्हें संतुष्ट करना होता है। दवा की खूबियां बतानी होती हैं, तभी वे मरीजों के प्रिसक्रिप्शन में लिखते हैं। इसके अलावा दुकानों में दवा कैसे उपलब्ध हो, यह मार्केटिंग एग्जिक्यूटिव तय करता है।
इसके अलावा प्रोडक्ट्स एग्जिक्यूटिव, क्वालिटी कंट्रोल, कोऑर्डिनेटर जैसे पदों पर नियुक्ति हो सकती है। खुद की दवा कंपनी या दुकान खोल कर रोजगार शुरू किया जा सकता है।
आमदनी
इस फील्ड में शुरुआती मासिक वेतन 8 से 15 हजार रुपये तक है। इसमें फार्मासिस्ट, थैरेपिस्ट, मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव, प्रोडक्ट एग्जिक्यूटिव पद शामिल हैं। वहीं रिसर्च और एंट्री लेवल पर सैलरी डेढ़ लाख रुपये वार्षिक मिलती है। मार्केटिंग क्षेत्र में एक फ्रेशर को 3 से 3.5 लाख रुपये वार्षिक मिल जाते हैं।
प्रमुख संस्थान
दिल्ली इंस्टीटय़ूट ऑफ फार्मास्युटिकल साइंस एंड रिसर्च, पुष्प विहार, साकेत, नई दिल्ली
वेबसाइट : www.dipsar.in
इनवोटेक फार्मा बिजनेस स्कूल, शाहदरा, दिल्ली-32
वेबसाइट : www.ipbs.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन, मोहाली, चंडीगढ़
वेबसाइट : www.niper.ac.in
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ फार्मा मार्केटिंग, लखनऊ
वेबसाइट : www.iipm.com
इंस्टीटय़ूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, पुणे।
वेबसाइट : www.pharmadiplomas.com(फजले गुफरान,हिंदुस्तान,दिल्ली,30.11.3010)
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