सभी भाषाओं की जननी संस्कृत वर्तमान में हमारे देश में ही अनजान सी भाषा बनकर रह गई है। स्कूलों में भी विद्यार्थी संस्कृत पढ़ने की बजाय पंजाबी व शारीरिक शिक्षा को वैकल्पिक विषय के रूप में चुनते हैं। दूसरी ओर संस्कृत के उत्थान के लिए शिक्षा विभाग व प्रशासन भी खास ध्यान नहीं दे रहा है। सरकारी स्कूलों में 11वीं व 12वीं में संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थियों की लगातार कमी होती जा रही है। एक दशक पहले तक संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या ठीकठाक होती थी, लेकिन आज गिने-चुने विद्यार्थी ही 11वीं और 12वीं में संस्कृत को वैकल्पिक विषय के रूप में चुनते हैं। हालांकि संस्कृत विषय के प्रति विद्यार्थियों का रूझान बढ़ाने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय ने भी काफी प्रयास किए लेकिन इसके कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आए हैं। 2008 में व्यवस्था की गई थी कि 8वीं में संस्कृत विषय में 60 प्रतिशत से ज्यादा अंक लाने वाले विद्यार्थी को 250 रुपये तथा 11वीं और 12वीं के विद्यार्थियों को 800 रुपये प्रति माह वजीफा दिया जाएगा। इसके बाद भी सरकारी स्कूलों में संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थियों की कमी होती जा रही है। राजकीय मॉडल स्कूल सेक्टर-16 में 1375 विद्यार्थियों में केवल 59 विद्यार्थियों ने ही संस्कृत विषय लिया है। स्कूल में संस्कृत के मात्र दो शिक्षक हैं। शिक्षक कहते हैं कि संस्कृत पढ़ने के लिए विद्यार्थियों को प्रेरित किया जाता है, लेकिन ज्यादातर विद्यार्थी पंजाबी या शारीरिक शिक्षा को ही वैकल्पिक विषय के रूप में चुनते हैं। इसी तरह राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल सेक्टर-35 में तो शिक्षकों का ही टोटा है। यहां चार कक्षाओं को पढ़ाने के लिए केवल एक शिक्षक है। इस स्कूल के 9वीं एवं 10वीं में 310 विद्यार्थियों में से 39 विद्यार्थियों ने संस्कृत विषय लिया हुआ है। इस स्कूल में 12वीं में केवल चार विद्यार्थी ही संस्कृत पढ़ते हैं। सरकारी स्कूल सेक्टर-20 में 10वीं व 11वीं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या 500 है जबकि इनमेंसे केवल 38 विद्यार्थियों ने संस्कृत विषय को वैकल्पिक विषय के रूप में चुना हुआ है। सरकारी स्कूल मौलीजागरां में एक भी संस्कृत शिक्षक नहीं हैं। विद्यार्थी पढ़ें तो पढ़ें कैसे? उधर इस संबंध में डीपीआई स्कूल पीके शर्मा का मानना है कि मानव संसाधन मंत्रालय के अथक प्रयास के बाद भी विद्यार्थियों का संस्कृत पढ़ने की तरफ झुकाव कम हो रहा है(ओजस्कर पांडेय,दैनिक जागरण,चंडीगढ़,9.12.2010)।
दुर्भाग्य है।
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