अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास आयुक्त (आईआईडीसी) अनूप मिश्र ने शनिवार को यहां स्वीकार किया कि प्रचुर संभावनाओं के बावजूद लखनऊ-कानपुर गलियारा सूचना प्रौद्योगिकी और बिजनेस प्रोसेसिंग आउटसोर्सिंग (आईटी-बीपीओ) हब के तौर पर विकसित नहीं हो पाया है। उन्होंने इसकी तीन वजहें बतायीं। पहली, उप्र की छवि, जिसे बनाने की जरूरत है। दूसरी, लखनऊ-कानपुर गलियारे में आईटी और बीपीओ क्षेत्र की चुनिंदा बड़ी कंपनियों को आकर्षित कर पाने में नाकामी। तीसरी लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण (लीडा) का शक्ल न ले पाना।
श्री मिश्र टीसीएस अवध पार्क, विभूतिखंड, गोमतीनगर में 'लखनऊ-कानपुर गलियारे को आईटी-बीपीओ हब के तौर पर विकसित करने' पर आयोजित परिचर्चा में शिरकत कर रहे थे। परिचर्चा का आयोजन भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने किया था। उन्होंने कहा कि सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद लीडा परियोजना आगे नहीं बढ़ पा रही है। परियोजना के लिए जमीन का बंदोबस्त करना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। लीडा के अधिसूचित क्षेत्र में जमीन की कीमतें नोएडा के बराबर मांगी जा रही हैं। उन्होंने बताया कि आईटी एसईजेड के लिए लखनऊ में दो स्थानों पर स्थल चिन्हित किये गए हैं। दोनों स्थानों पर आईटी एसईजेड कौन एजेंसी विकसित करे, शासन स्तर पर इस पर मंथन चल रहा है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के निदेशक प्रो.संजय ढांडे ने कहा कि लखनऊ-कानपुर गलियारे को आईटी-बीपीओ हब के रूप में विकसित करने के लिए तत्काल एक स्पेशल पर्पज व्हीकल (एसपीवी) गठित किया जाना चाहिए जो इसके लिए कार्ययोजना तैयार कर उसे अमल में लाए। उन्होंने कहा कि भविष्य में कानपुर में होने वाला औद्योगिक विकास शहर के उत्तर व पश्चिमी इलाके में होगा। एक ऐसा एक्सप्रेसवे बनना चाहिए जो कानपुर के उत्तर-पश्चिमी इलाके को गंगा एक्सप्रेसवे से जोड़ते हुए लखनऊ तक आये। यदि ऐसा हुआ तो लखनऊ-कानपुर गलियारा नोएडा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से सीधे जुड़ जाएगा। इससे लखनऊ-कानपुर गलियारे को आईटी-बीपीओ हब के तौर पर विकसित करने में मदद मिलेगी।
इससे पूर्व, टाटा कन्सल्टेन्सी सर्विसेज के प्रमुख परामर्शदाता जयंत कृष्ण ने कहा कि लखनऊ-कानपुर में आईटी-बीपीओ हब की प्रचुर संभावनाएं हैं। कई अन्य राज्यों में दूसरे दर्जे के शहर आईटी-बीपीओ हब के तौर पर विकसित हो चुके हैं लेकिन उप्र में बात नोएडा से आगे नहीं बढ़ पा रही। यह स्थिति तब है जब प्रदेश में हर साल 1.4 लाख से अधिक इंजीनियरिंग स्नातक पैदा हो रहे हैं। अकेले लखनऊ और कानपुर में ही मिलाकर 50 से अधिक इंजीनियरिंग कालेज हैं। उन्होंने कहा कि उप्र में सरकार और उद्योग यदि इच्छाशक्ति का परिचय दें तो यह सपना साकार हो सकता है(दैनिक जागरण,लखनऊ,19.12.2010)।
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